उत्तर: इस कार्य में भलाई नहीं है। कार्य की सफलता में संदेह है।
चौपाई : उघरहिं अंत न होइ निबाहू। कालनेमि जिमि रावन राहू॥
अर्थ:- जो (वेषधारी) ठग हैं, उन्हें भी अच्छा (साधु का सा) वेष बनाए देखकर वेष के प्रताप से जगत पूजता है, परन्तु एक न एक दिन वे चौड़े आ ही जाते हैं, अंत तक उनका कपट नहीं निभता, जैसे कालनेमि, रावण और राहु का हाल हुआ
राम चरित मानस में स्थान : यह चौपाई बालकाण्ड के आरम्भ में सत्संग वर्णन के प्रसंग में है।