आज विश्व पुस्तक दिवस के अवसर पर कुछ पंक्तियां पेश हैं, गौर फरमाएं।
आज बहुत याद आती हैं, वो पुरानी किताबें मेरी।
उनसे ही सीखा था हर पल, कहना मैं बातें मेरी।
जिनको पढ़कर कहीं खो जाता था मैं।
सीने में रख किताबों को सो जाता था मैं।
वो कुछ कहानियाँ मुझे आज भी याद हैं।
जिनको पढ़कर भावुक हो जाता था मैं।
जिनके कारण मीठी नीदों में, कटती थी रातें मेरी।
आज बहुत याद आती हैं, वो पुरानी किताबें मेरी।
कवि जिस तरह से कविता किया करते थे।
सच में सभी वो पात्र सामने जिया करते थे।
कहानियां तो दिल को इतना भा जाती थी।
खुद को कहानी का पात्र समझ लिया करते थे।
पहले उनसे होती थी, हर रोज मुलाकातें मेरी।
आज बहुत याद आती हैं, वो पुरानी किताबें मेरी।
किताबें वो तब बहुत भारी हुआ करती थी।
और एक नहीं बहुत सारी हुआ करती थी।
पढ़ने में चिढ़ते थे, कभी-कभी किताबों को।
पर उनसे अपनी एक यारी हुआ करती थी।
फिर से ताजा हो गई, आज वो पुरानी यादें मेरी।।
आज बहुत याद आती हैं, वो पुरानी किताबें मेरी।
निकालूंगा उन किताबों को ,जो बंद हैं सालों से।
आजाद करूँगा उनको, बक्सों में लगे तालों से।
आज समझा हूँ उन किताबों की अहमियत मैं।
जिनके कागज की कस्ती, गुजरती थी नालों से।
फिर से हमसफ़र बनेंगी, वो पुरानी किताबें मेरी।
आज बहुत याद आती हैं, वो पुरानी किताबें मेरी।