एक ऐसी शक्ति,
करे विश्व भक्ति ।
एक ऐसा विश्वास,
जगाए सदैव आस ।
एक ऐसा संकल्प,
दृढ़ता बस विकल्प ।
एक कर्मठ देह,
जो बोले, वो करे ।
उसके विरुद्ध,
तम है एकजुट,
छब्बीस रावण,
करें उससे युद्ध ।
वो छवि,
नतमस्तक रवि,
काम बोलते हैं जिसके,
नाम की ज़रूरत नहीं ।
ऐसे अवतार,
युगों युगों, एक बार,
गर्जना से उनकी,
रफूचक्कर गद्दार ।
उस फरिश्ते को नमन,
पावन जिसका कण-कण,
हिंद की सेवा को,
करे अर्पण तन मन ।
लेखन प्रयासरत, ‘अभिनव’ रथ ।