कविता

उनसे ही रोशन ये दिल है

उनसे ही रोशन ये दिल है

मैं रात रात भर रोता हूं,
खुद रोते रोते सोता हूं,
कोई पूछने भी ना है आता,
इस बात से आहत होता हूं ।

ये बहती हुई जो धारा है,
उनको ये लगे बहाना है,
ये रोज़-रोज़ की नौटंकी है,
बेफिजूल का शौक जैसे पाला है ।

ये मोती लगे उन्हें झांसा है,
उन्हें डर है कि होए तमाशा है,
मेरे से लेना-देना कुछ भी नहीं,
दिल की जगह वज्र का सांचा है ।

मैं जीऊं मरूं उन्हें फ़र्क नहीं,
मेरी कोई भी उन्हें कद्र नहीं,
इतना मुझे कोसें है हर पल,
जैसे मेरे सिवा कोई अभद्र नहीं ।

पानी भी मुझको नसीब नहीं,
बिल्कुल भी उनके करीब नहीं,
अपनेपन से बस कंगाल हूं मैं,
पैसों से हूं मैं गरीब नहीं ।

झूठी-मूठी भी चुप ना कराया गया,
अपना ना मुझको बनाया गया,
रोने वाले कमज़ोर होते हैं,
यही बार-बार बतलाया है ।

रोता ना तो मर जाता मैं,
अंदर-अंदर ही भर जाता मैं,
गुबार बाहर यदि ना आता तो,
कैसे खुदको बोलो बचाता मैं ?

कोई सुने मुझे तो रोऊं क्यूं !
मोती फ़िर फालतू में खोऊं क्यूं !
मुझे शौक नहीं है रोने का,
मैं बिलख-बिलखकर सोऊं क्यूं !

कभी गले ना मुझे लगाया है,
कि सदा ही मुझे भगाया है,
खोया जान-बूझकर मुझको,
और मैने उनको बस पाया है ।

माथे पे कभी सिंदूर नहीं,
मैं उनसे कभी भी दूर नहीं,
कहा “लगालो थोड़ा सा ही”,
वे कहें “यहां दस्तूर नहीं” !

सही समझ ना पाए मुझको,
इसका ही है पहला दुख तो,
वे मानें ना मानें पर सच है,
उनके बाद तवज्जो है खुद को ।

दिल से कभी ना अपनाया,
करें घृणा देखकर मेरी छाया,
क्या जुर्म किया मुझे पता नहीं !
मुझे छोड़ हर कोई उन्हें भाया ।

उनकी बला से मैं रोते जाऊं,
कभी चाह ना उनकी पा पाऊं,
परवाह नहीं बिल्कुल मेरी,
मैं घर आऊं कि ना आऊं ।

लगूं उन्हें नकारा वाहियात मैं,
मेरे सिवा करें वो हर कोई बात,
जब कहूं कि दो पल मेरे साथ,
फिर गुम होवें सब ही संवाद ।

शूद्र हरिजन मुझे बना दिया ?
साथ बैठने से मना किया ?
मैं उनके लिए ही पागल हूं,
सुनकर भी है अनसुना किया ।

मैं साथ के उनका भूखा हूं,
पता नहीं कहां मैं चूका हूं !
हर किसी से प्यार से बोलें वो,
मैं केवल अबतक सूखा हूं ।

मुझे उनकी ही बस प्यास है,
उन्हें लगे ये बस बकवास है,
कभी समझ ना पाईं मुझको वे,
इक वो ही तो मेरी आस हैं ।

दिल चीरके दिखा ना पाऊं मैं,
जाऊं तो कहां को जाऊं मैं,
मेरी सुनती नहीं हैं वे बिल्कुल,
कैसे उनको अब पास बुलाऊं मैं ।

वे गलत ना मुझको समझें अब,
उनको मानूं मैं अपना रब,
सबसे ज़्यादा मेरी फ़िक्र करें,
पहले हूं मैं, फिर बाद में सब ।

काश दिल में उनके बस जाऊं,
उनके तन मन पर छा जाऊं,
जो उनके लिए मुझे तृष्णा है,
उससे ज़्यादा काश पा जाऊं ।

सोचूं ये क्या अब मुमकिन है ?
क्या आ सकता अब फिर दिन है ?
उनसे ही रोशन ये दिल है,
घुप अंधियारा ही उनके बिन है ।

अभिनव कुमार एक साधारण छवि वाले व्यक्ति हैं । वे विधायी कानून में स्नातक हैं और कंपनी सचिव हैं । अपने व्यस्त जीवन में से कुछ समय निकालकर उन्हें कविताएं लिखने का शौक है या यूं कहें कि जुनून सा है ! सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि वे इससे तनाव मुक्त महसूस करते…

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