।। समझ बैठे ।।
तेरी सारी ख्वाहिशों को ,
हम हमारी रहमत समझ बैठे।
तेरी होंठो की मुसकुराहट को ,
तो हम हमारी चाहत समझ बैठे ।
तेरी ज़ुल्फो की घटाओ को ,
हम हमारी अमानत समझ बैठे ।
तेरी नयनों की पलकों को ,
तो हम हमारी इबादत समझ बैठे ।
तेरी कानों की बालियो को ,
हम हमारी जमानत समझ बैठे ।
तेरी झूठी मुहब्बत को ,
हम हमारी जिंदगी समझ बैठे ।
हा गलती हमारी जो तेरे इंतजार को ,
तो हम हमारी इकरार समझ बैठे ।
हा गलती कर दिया हमने ,
सजा दो हमे जो तुम्हे अपना समझ बैठे ।
समझ बैठे , समझ बैठे ,
जो तेरी ख़ामोशीयो को ,
हम तेरा इजहार समझ बैठे ।
जो हम किसी पराए को ,
अपने दिल का ताज समझ बैठे ।
शुक्रगुज़ार हूँ मैं तेरे शब्दों का जिनसे तुने इनकार किया ;
वरना लोगो के बहकावे में ,
हम खुद को खामाखाहि कवि समझ बैठे ।