भारतीय जन मानस के रोम रोम में राम व्याप्त है। राम चरित्र व्यापक और अनंत है। राम ब्रम्हा, विष्णु तथा महेश का दिव्यतम रुप है। राम, ज्ञान भक्ति, मर्यादा,कर्म, का पवित्रतम संगम है। राम मन, मष्तिष्क, आत्मा का कल्याणकारी पावन पवित्र प्रवाह हैं।
राम साकार है, निराकार है, निर्विकार है। राम दृश्य है, अदृश्य है, राम मूर्त है,अमूर्त है,। राम सिन्धु है, राम बिन्दु है,। राम अविनाशी है, घट-घट में वासी है। राम व्याप्त है स्थूल में, सूक्ष्म में,समृ”िट में ,जड़ में चेतन में ब्रह्माण्ड में, व्यक्ति में, अर्थात् राम कण कण में है, राम प्रकट है अप्रकट है, प्रा्रणी में, प्रकृति में, सकल दृष्टि में, मन, वचन,कर्म भुवन में अर्थात् राम सर्वत्र है।
कृष्ण “ाोड”ा कला में पारंगत है जबकि, कृष्ण बारह कलाओं में।
“ाोड”ा कला कृ”ण अवतारा, द्वाद’ा कला राम अवतारा।
राम मर्यादा पुरुषोतम है अर्थात् वे स्वयं तो मर्यादा में रहे ही लेकिन उन्होंने सभी को मर्यादित सम्मान दिया। शिव धनुष भंग होने से क्रोधित परशुराम को पूरा सम्मान देते हुये उनका क्रोध शांत किया।
‘‘ राम नाम लधु नाम हमारा,
परशु सहित बड नाम तुम्हारा’’
इसी प्रकार समुद्र से मार्ग प्रदान करने हेतु तीन दिन तक प्रार्थना की। निषाद राज के प्रेम को पूरा सम्मान देते हुये अपने चरण धुलवाये तथा वन से वापिसी पर मिलने के आग्रह को स्वीकार किया।
विश्वामित्र ऋषि के साथ जाकर राक्षसों को संहार करके उनके अनुष्ठान को पूर्ण करवाया । गुरु आज्ञा से मिथिला की ओर चले तथा गुरु आज्ञा से ही मार्ग में अहिल्या का उद्धार किया। मिथिला में गुरु आज्ञा पाकर ही शिव धनुष को भंग किया। तथा अपने पिता महाराज दशरथ के वचनों का सम्मान करते हुये वन गमन किया।
इसीलिये गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है।
‘‘ राम चरित मानस एहिं नामा,
स्ुानत श्रवण पावहिं विश्रामा।
‘‘ राम चरित मानस मुनि भावन,
विरचेउ संभू सुहावन पावन।
राम चरित अति अमित मुनीसा,
कहिं न सकहिं सत कोटि अहीसा।
राम नाम स्मरण कुमति को हर कर सुमति प्रदान करता है।
हनुमानजी ने जब लंका में प्रवेश किया तो उस समय विभीषण सो रहे थे। श्रीराम के श्रेष्ठ सेवक हनुमान ने सुमति के रुप में जगाया जबकि कुम्भकर्ण को कुमति के रुप में रावण ने जगाया। सब जानते है कि, सुमति द्वारा जगाये गए विभीषण को प्रभु श्रीराम ने शरण दी जबकि कुमति रुपी रावण के द्वारा जगाये गये कुम्भकर्ण को युद्ध स्थल में वीरगति प्राप्त हुई। इसी प्रकार राम के श्रेष्ठ भक्त भरत जब तक राज महल में रहे चारों ओर समृद्धि और स्नेह रहा लेकिन जैस ही वे अपने मामा के यहाँ गये वैसे हीं मंथरा रुपी कुमति ने महल में प्रवेश किया और राम को वनवास गमन करना पड़ा।
राम मर्यादा पुरुषोतम हैं। माता पिता, गुरु आज्ञा के पालन करने को अपना धर्म समझते हैं। भरत के अनुनय विनय की तुलना में उन्होने अपने पिता की आज्ञा का पालन कर वन गमन को चुना, गुरु आज्ञा से राक्षसों का वध किया तथा वैदिक परम्परा और संस्कृति की रक्षा की।
राम चरित्र जितना श्रेष्ठ हैं, उसी अनुरुप तुलसी ने राम चरित मानस की रचना की हैं। तुलसी के राम भारतीय जन मानस के आदर्श हैं। वे श्रेष्ठ पुत्र, शिष्य, भाई, राजा हैं इसीलिये वे अपने आदर्श राम को अपने हृदय में बसाने की प्रार्थना करते हैं।
बंदौ राम लखन वैदेही, जो तुलसी के परम सनेही।
माॅगत तुलसीदास कर जोरे, बसहूॅ हृदय मन मानस मोरे।
तुलसी राम के प्रति पूर्ण श्रद्धा का भाव रखते हैं तभी संपूर्ण रामचरित मानस में केवल दो चौपाइयां ही है जिनमें ‘र’ या ‘म’ नहीं आया है।
वासंतिक नवरात्रि के नवें दिन श्री राम ने मनुज रुप में राजा दशरथ के यहाँ पुत्र रुप में जन्म लिया। श्री राम जन्म का वर्णन तुलसी ने कुछ इस प्रकार किया हैं।
‘‘ नौमी तिथि मधुमास पुनीता,
शुक्ल पक्ष अभीजीत हरिप्रीता’
दशरथ पुत्र जनम सुनि काना,
मानहुं ब्रम्हानंद समाना।
सुमन वृ”िट आका’ा ते होई,
ब्रम्हानंद मगन सब कोई।
भारतीय जन मानस के मान सम्मान और अभिमान प्रभु श्री राम के जन्म की हार्दिक शुभ कामनाऐं।