प्रेम बहे झरने सा तेरा ||
तन में सिहरन, सांसों में गति
मन भी व्याकुल, नव-जन्में सा,
ऐसा अदभुत प्रेम तुम्हारा
ह्रदय में बसता, पहली बारिश सा ||
भाव तुम्हारे, मन के अन्तस पर
जैसे रश्मि हिम के पर्वत पर,
प्रेम बहे झरने सा तेरा
मन मोहता, कविता बन कर ||
नेह की ऐसी सुगहन धारा
तेरे नयनों में कल-कल बहती है,
बिम्ब अमिट, बन गया है मन में
संग मेरे भी, अब एक मोती है ||
स्पर्श तुम्हारा रोम-रोम में
जैसे समकी हों बूंदें, मेघों में,
शाश्वत बनता यह बंधन है
तेरा – मेरा ह्रदय समरस है ||