कविताव्यंग

मैं नहाया नहीं पिछले रविवार से

मैं नहाया नहीं पिछले रविवार से

भिं भिना कर उड़ गई है मक्खी मेरे कान से
हूं नहाया मैं नहीं पिछले रविवार से।
है मल्लिचछी पन नहीं मेरे जी और जान में
वो तो बस यूं ही निकल गए पिछले कुछ दिन  शान में।

थी लगाई ये शर्त मैंने अपने यार से
है नहाना तो सरल पर ना नहाना नहीं आसान रे
चलो देखें कौन जीतेगा ये बाजी जान ले
आज से दो हफ्ते तक खुद को नहाया मान लें।

ना नहाओगे मगर ये भी कहो की ना नहाया
है कठिन सुन लो अभी उसने था मुझ से ये कहाया।
आएंगे हर ओर से ताने नहाने के तुम्हें
पर तुम कहना है नहीं पानी ये शूट करता मुझे।

नाम देंगे अतरंगे तब वो महा ज्ञाता तुम्हें
तुम निशाचर तुम हो भंगी जानवर भी बोलेंगे तुम्हें।
तुम सुनोगे उनके ताने लो अभी संकल्प ये
जीत पाओगे नहीं तुम हूं बड़ा ही कल्प मैं।

इतना सुनना था बस काफी मैंने मन में ढा लिया
है हराना इसको पक्का पानी से तौबा किया।

©शुभम शर्मा 'शंख्यधार' शुभम शर्मा का जन्म जिला शाहजहांपुर यू ०प्र० के एक छोटे से कस्बे खुटार में हुआ। ये उन स्वतंत्र लेखकों में से हैं जो सिर्फ अपने मनोरंजन के लिए तथा अपने खाली समय में अपने अंदर झांककर उसका सदुपयोग करने के लिए लेखन करते हैं। आप…

Related Posts

error: Content is protected !!