कुछ शेर ‘उन’ के नाम
लहरों के यूं ही किनारे खुल गए
सुना है उनको बागी हमारे मिल गए,
ये उफनती हुई लहरें खामोश भी होंगी
हमको भी कुछ नए सहारे मिल गए।
वो अब नहीं पूछा करते हैं हमें अक्सर अपनी बातों में
कई मुद्दत के लिखे खत उन्हें हमारे मिल गए।
हमने भी फिर उनको फुरसत से परेसां किया
हमें भी याद करने के नए बहाने मिल गए।
सुबह की पहली किरण के कमल पे पड़ते ही
चारों ओर सारे प्याले खुल गए,
एक बार ही बोए थे हमने बीज कुछ चुनकर
दो बार की बरसात से पौधों में ढल गए।