काश आ जाएं फ़िर भगत सिंह
काश आ जाएं फ़िर भगत सिंह,
काश दहाड़े वो साहसी सिंह,
भारत का होवे उद्धार,
बिल में घुस जाएं दुर्जन नीच ।
अंदरूनी कलह भी हो खत्म,
बंद रोना जाति व धर्म,
गद्दारों का काम तमाम,
फिर से खिलेंगे ज्ञान आध्यात्म ।
जो जैसी भाषा को गाए,
उस भाषा में समझाया जाए,
आज़ादी जिसको अभी चाहिए,
पानी भी ना मांगने पाए ।
बहुत हो गई गुंडागर्दी,
शराफत अब हो गई है ज़ख्मी,
ज़मीर धंस गए काफ़ी अंदर,
खंजर अभिभूत करे अब धरती ।
पापियों को देने सज़ा से सीख,
भ्रष्टाचारियों को मंगवाने भीख,
हो जाएं अवतरित जल्द धरा पर,
काश आ जाएं भगत सिंह ।
प्रयासरत – ‘अभिनव’ रथ ✍🏻