एक जीवन ऐसा भी……
जीवन की तन्हाई को महसूस कर
सांसों को रोके जा रहा हूं मैं ।
नुमाईसें तो बहुत हैं मेरे अंदर
फिर भी प्यार निभा रहा हूं मैं।।
किस ने देखी दीपक की बाती
कि वो अंधियारे को मिटा देती है।
फिर भी हे साखी !
उसी को चमन बनाते जा रहा हूं मै ।।
भव मे होंगे ओर भी बहुत
मेरे जैसा कोई दुखियारा न होगा।
पता है मुझे,कौन सुनेगा गाथा अपनी
फिर भी सबको सुनाने जा रहा हूं मै।।
जीवन की तन्हाई को महसूस कर
सांसों को रोके जा रहा हूं मैं ।।
मेरे दिल-ए ग़म का वो किनारा नहीं
कैसे छोड़ूं ज़ीना,अभी तो मै हारा नहीं।
जीवन है एक लम्बी दौड़-धूप
पर,हे साखी !मेरा कोई सहारा नहीं।।
कितने आए,गए इस जहां से ,
अब ये अल्फ़ाज़ छोड़ जा रहा हूँ मैं ।
जीवन की तन्हाई को महसूस कर
सांसों को रोके जा रहा हूं मैं ।।