कविता

एक जीवन ऐसा भी……

एक जीवन ऐसा भी……

जीवन की तन्हाई को महसूस कर
सांसों को रोके जा‌ रहा‌ हूं मैं ।
नुमाईसें तो बहुत‌ हैं मेरे अंदर
फिर भी प्यार निभा रहा हूं मैं।।

किस ने देखी दीपक की बाती
कि वो अंधियारे को मिटा देती‌ है।
फिर भी हे साखी !
‌‌ ‌ ‌ ‌ ‌‌‌ ‌ उसी‌ को चमन बनाते जा रहा हूं मै ।।

भव मे‌ होंगे ओर भी‌ बहुत
मेरे जैसा‌ कोई दुखियारा न होगा।
पता है मुझे,कौन सुनेगा गाथा अपनी
फिर भी सबको सुनाने जा रहा हूं मै।।

जीवन की तन्हाई को महसूस कर
सांसों को रोके जा‌ रहा‌ हूं मैं ।।

मेरे दिल-ए ग़म का वो किनारा नहीं
कैसे छोड़ूं‌ ज़ीना,अभी तो मै हारा नहीं।
जीवन है एक लम्बी दौड़-धूप
पर,हे साखी !मेरा कोई सहारा नहीं।।

कितने आए,गए इस जहां से ,
‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ अब ये‌‌ अल्फ़ाज़ छोड़ जा रहा हूँ मैं ।
जीवन की तन्हाई को महसूस कर
सांसों को रोके जा‌ रहा‌ हूं मैं ।।

मै लेखक अजय महिया मेरा जन्म 04 फरवरी 1992 को एक छोटे से गॅाव(उदासर बड़ा त नोहर. जिला हनुमानगढ़ राजस्थान) के किसान परिवार मे हुआ है मै अपने माता-पिता का नाम कविता व संगीत के माध्यम करना चाहता हूं मै अपनी अलग पहचान बनाना चाहता हूं

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