एक अनुसंधान : ‘ईश्वर’ क्या हैं?
जब भी ‘ईश्वर’ शब्द हमारे जेहन में आता हैं, मस्तिष्क स्वतः धार्मिक चिंतन में प्रवेश करने को अग्रसर हो जाता हैं| वास्तव में अगर हम हजारों वर्षों के मानवीय इतिहास पर एक गहरी नजर डाल सकें, एक स्पष्ट प्रमाणिक तथ्य निकलकर कर सामने आता हैं कि, ‘हम मनुष्यों ने जब भी ‘ईश्वर’ शब्द को परिभाषित या विश्लेषित करने का प्रयास किया हैं, पृष्ट्भूमि धार्मिक ही रही हैं” | यही वजह भी हैं कि, हम ईश्वर को एक धर्म तत्व के रूप में स्वीकृत करते आये हैं | अब तक कि मान्यताओं के अनुसार ”ईश्वर’ एक ऐसी अलौकिक, अद्वितीय, महापराक्रमी इकाई हैं, जो इस सृष्टि का निर्माता और निर्देशक हैं | इस सृष्टि में किसी भी घटना के होने या न होने कि वजह हैं” |
धर्म और धार्मिक मान्यताओं कि पृष्टभूमि से तैयार ‘ईश्वर’ कि इस परिभाषा को जब भी हम वास्तविकता कि नजर से देखने और समझने का प्रयत्न करते हैं, कुछ स्पष्ट सा नहीं दिखता हैं | ईश्वर कि इस धार्मिक परिभाषा को जब हम अपने जीवन में ढूंढने का प्रयत्न करते हैं, वहां भी एक विरोधाभास सा प्रतीत होता हैं | ऐसे में एक संदेह उतपन्न होता हैं कि, कहीं ईश्वर के प्रति हम गलत विवेचना तो नहीं कर रहे हैं ? कहीं हमारा ईश्वरीय चिंतन सिर्फ काल्पनिक संकल्पना तो नहीं बन कर रह गया हैं ? जब मैं यह प्रश्न आपके चिंतन हेतु रख रहा हूँ, इसके पीछे धर्म या धार्मिक मान्यताओं पर सवाल उठाना हमारा उदेश्य बिलकुल भी नहीं है| अपितु धर्म और धार्मिक तत्वों कि एक बेहद स्पष्ट, सरल, परिभाषी, तार्किक और हमारी जीवनशैली से सम्बद्ध विवेचना लोगों के समक्ष रखना हैं, जिससे हमारी आने वाली पीढ़ी जो ‘धर्म’ और ‘धर्म-तत्वों’ से आपने आपको सम्बन्ध नहीं कर पा रही हैं, इसे समझ सके |
हमें सोचना होगा कि, अगर धार्मिक पृष्टभूमि आधारित चिंतन से हम ‘ईश्वर’ कि स्वीकार्य परिभाषा तय नहीं कर पा रहे हैं, क्या हमारे वैचारिक/शैक्षणिक चिंतन कि किसी अन्य धारा में ईश्वर को परिभाषित किया जा सकता हैं ? क्या हम ‘ईश्वर’ और ‘ईश्वरीय शक्ति’ के मानवीय जीवन पर स्पष्ट प्रभावों का खुला विश्लेषण कर सकते हैं ? आइये हम सब मिलकर एक प्रयास करें | ‘ईश्वर’ को नए सिरे से ढूंढने के लिए बेहद आवश्यक हो जाता हैं कि, हम अब तक मस्तिष्क में जमा अवधारणाओं के चंगुल से कुछ देर के लिए आज़ाद हो जाए | नव-चिंतन सर्वथा शून्य से ही उतपन्न होता हैं |
क्या हमारे जीवन में ईश्वरीय शक्ति का प्रभाव हैं ?
मित्रों, ‘ईश्वर’ शब्द को वास्तविकता के साथ परिभाषित करने के लिए बेहद आवश्यक हैं कि, हम वास्तविक मानव जीवन पर नजर डालें | जब हम एक सामान्य मानवीय जीवनशैली में ‘ईश्वरीय तत्व’ को ढूंढने का प्रयास करते हैं, एक बात स्पष्टतः निकल कर सामने आती हैं कि, ”हमारे जीवन में ‘ईश्वर’ अर्थात ईश्वरीय शक्ति प्रभावी हैं” | लेकिन जैसे ही हम इस तथ्य पर पहुंचते हैं, कई प्रश्न प्रश्न खड़े हो जाते हैं कि, कैसे ? हमारे जीवन में ईश्वरीय शक्ति के प्रभाव का प्रमाण तो धर्म भी नहीं दे सका हैं, फिर कैसे हम इस तथ्य को प्रमाणित कर सकते हैं ? साथ ही प्रश्न खड़ा होता हैं कि, अगर हम इसे सिद्ध कर भी पाए तो,..यह कौन सी ऊर्जा हैं ? इसकी प्रबलता और इसका स्रोत क्या हैं ?
ईश्वरीय शक्ति मानव जीवन में प्रभावी हैं, लेकिन कैसे ?
इस के लिए हमें अपने सामान्य दिनचर्या के कुछ प्रसंगों पर नजर डालनी होगी | जैसा कि हम देखते हैं – “हमारे आस-पास कुछ लोग मिलकर किसी भारी वस्तु को उठाने का प्रयत्न करते हैं | वे बार-बार प्रयत्न करते हैं लेकिन थोड़ा सा चूक जाते हैं | तभी सभी मिलकर ‘हनुमान/शिव जैसे ईश्वरीय स्वरूपों का जयकार लगाते हैं, और वस्तु उठ जाती हैं” | यह परिणाम ऐसे मामलों में ८०-९०% तक होता ही हैं | मतलब स्पष्ट हैं कि, हमारे जीवन में ईश्वर काल्पनिक नहीं वास्तविक प्रभाव के साथ मौजूद हैं..क्योंकि शाब्दिक उच्चारण से कार्य सफल हो रहे हैं | ऐसा अक्सर होता हैं कि, कई बार ईश्वर का नाम लेने से हमारा प्रयास सफल हो जाता हैं |
‘ईश्वर’ या ‘ईश्वरीय शक्ति’ कौन सी ऊर्जा हैं , उसकी स्रोत और प्रबलता क्या हैं ?
”सर्वप्रथम तो ‘ईश्वर’ कोई अलौकिक शक्ति नहीं हैं | ‘ईश्वर’ को हमारे जीवन में मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से सर्वक्षेष्ठ ढंग से परिभाषित किया जा सकता हैं| ‘ईश्वरीय शक्ति एक प्रकार कि काल्पनिक ऊर्जा हैं, जो एक आभाषी चरित्र में विश्वास से जन्म लेती हैं| एक व्यक्ति जब मुश्किल में होता है, तब वह अपने धर्म (आस्था) से जुड़े ईश्वर को याद करता हैं | जैसे ही वह ईश्वर कि कल्पना करता हैं, उसे लगता हैं कि अब मेरे साथ कोई हैं,… कोई हैं जो मुझे इस संकट से निकाल ले जायेगा | …उसका यह महसूस करना ही उसे आत्म प्रेरित कर देता हैं,..तत्क्षण में संकट से लड़ने के लिए उसके अंदर एक सकारात्मक ऊर्जा पैदा होती हैं, जिसे हम ईश्वरीय शक्ति के रूप में वर्णित कर सकते हैं ” |
जहाँ तक प्रश्न इस ऊर्जा के स्रोत का हैं, ” ईश्वर’ स्वयं में कोई ऊर्जा स्रोत नहीं हैं, वस्तुतः संकट कि घडी में ईश्वर शब्द के उच्चारण से जो सकारात्मक ऊर्जा हमारे शरीर में आती हैं, उसका स्रोत स्वयं हमारा शरीर ही हैं | वास्तव में ‘ईश्वर’ एक मन्त्र के रूप में कार्य करता हैं, जिसके उच्चारण से निराश और सुस्त पड़ी हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ प्रबल हो जाती हैं और हमारी आंतरिक ऊर्जा संगठित हो जाती हैं | जैसा कि ऊपर उदाहरण में देखा हमने कि, किस प्रकार लोग ईश्वर का नाम लेकर भारी वस्तु को उठा लेते हैं | यहाँ समझने कि आवश्यकता हैं कि, ईश्वर का नाम लेने से पूर्व जहाँ, आंतरिक ऊर्जा खंडित थी, वही नाम लेते ही सम्पूर्ण शरीर कि ऊर्जा बाजुओं में केंद्रित हो जाती हैं, जिससे कार्य आसानी से संभव हो जाता हैं | इस ऊर्जा कि प्रबलता का कोई तय पैमाना नहीं हैं, ..लेकिन यह इस हद तक प्रबल नहीं होती हैं , जिसे चमत्कारी कहा जा सके | अगर आप सामान्य अवस्था में अगर २५ कि.ग्रा. वजन उठा पाने में सक्षम हैं तो, ईश्वर के उच्चारण से और दो-चार कि.ग्रा और अधिक उठा सकेंगे | कोई अद्भुत चमत्कार कि सम्भावना शून्य हैं | ईश्वर कोई अद्वितीय, महापराक्रमी शक्तिस्रोत हैं, यह सिर्फ एक भ्रम हैं |
हमारे सामान्य जीवन में ईश्वर के प्रभावों एवं उनका खुला और स्पष्ट विश्लेषण, आपको कैसा लगा ? हमें इन्तजार रहेगा | यह आलेख ‘आपका …धर्म क्या हैं ?” …कि अगली कड़ी हैं | अगर आपने अब तक उसे नहीं पढ़ा हैं, तो एक बार अवश्य पढ़े | एक बार पुनः यह याद दिलाते हुए कि, हम किसी भी धर्म के पक्ष-विपक्ष में चिंतन नहीं कर रहे हैं | ‘धर्म’ हमारे जीवन में वैचारिक अनुशासन के लिए बेहद आवश्यक हैं, लेकिन इसके लिए बेहद जरुरी हैं कि ‘धर्म’ खुद सरल, अकाल्पनिक, व्यावहारिक और हमारे जीवन में प्रामाणिक हो, तभी यह हमें संयमित, नियमित और अनुशाषित कर सकता हैं | अगली कड़ी में …हम चलेंगे मानव इतिहास के पुराने पन्नों पर …और ढूढेंगे उस ईश्वर को …जिसे हमारे पूर्वजों ने पूजा था | धन्यवाद | जय भारत