कविता

दौर कुछ यूँ आया

दौर कुछ यूँ आया

पशुओ को कैद  कर जो मनुष्यों  ने था कब्जा जमाया ,

अब उसी मनुष्य जाति को नियति ने घर पर बिठाया |

दौर कुछ यूँ आया  

जिन अख़बारों की बस्ती मे जुर्म   के चेहरे थे बहुत ,

उस बस्ती मे सिर्फ एक चेहरा नजर आया |

दौर कुछ यूँ  आया  

उंगलियों की गिनती से हज़ारों तक का सफर मिनटों मे आया ,

उस दानव ने यमराज बन सब को दहलाया |

दौर कुछ यूँ आया  

ना फुरसत होने वालो को फुरसत का बोध कराया ,

शायद समय रुक जाये कहने वालो को समय का रुकना दिखाया |

दौर कुछ यूँ आया  

अमीरों का समय से पूर्व भविष्य को सोच राशन का लाना ,

गरीबों  का वही एक रोटी के लिए आँचल फैलाना |

दौर कुछ यूँ आया  

कि अख़बारों की गिनती को सुन हाय -तोःबाह  चिल्लाना ,

फ़िर शाम को  दोस्तों के साथ चर्चा कर उन गिनती मे से एक हो जाना |

दौर कुछ यूँ आया  

पार्टियों का भाषण छोड़ ट्विटर और फेसबुक को तीर का कमान बनाना ,

और जिन्हें ना था घुंघरूओं का ज्ञान उनका तालो का भेद बताना |

दौर कुछ यूँ आया  

जहा रामायण और भगवतगीता को दिखा चरित्र निर्माण  का सहारा बनाया ,

तो वही किसने कितना दिया का हिसाब रखवाया

और फिर उसी को जाति का आधार बताया |

दौर कुछ यूँ आया  

मातृ भूमि पर लाशों का कहर छाया ,

एक दिन के बच्चे को भी मास्क पहनाया |

दौर कुछ यूँ आया  

भगवान ने समाज सेवी का रुप धर फिर से राक्षसों का संहार करने वाले दूतों को लगाया ,

तो कुछ की विपरीत बुद्धि ने उन्हे बैसाखियो पर चलाया |
है नहीं मालूम मुझे की मेरा कहा कितना समझ आया …

यूँ कहलो मैने अपने दिल का हाल बताया |||

<div>Btech cs 3 rd year (Banasthali Vidyapith)</div> <div>From-BULANDSHAHR (U.P)</div>

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