भारत के विकास का रोड़ा नकरात्मक राजनीति
२०१४ के चुनाव ने कई बाते जाहीर कर दी । इसने सबसे बड़ी बात ये साबित कर दी है की अब देश विकास की राह पर चलने को तैयार है । लोगों ने मोदी को वोट दिया हो या मोदी के खिलाफ वोट दिया या फिर वोट ही ना दिया हो पर हर कोई यह देखने को जरूर उत्सुक था की मोदी जिन्होंने विकास के नाम पे चुनाव लड़ा देश का कितना विकास कर पाते है|
विकास और सकारात्मक सोच एक साथ चलते है । पर कुछ दिनों से विपक्ष के लोग और मीडिया का एक हिस्सा जरुरत से ज्यादा ही नकारात्मक विचारो को जन्म दे रहा है ।
मोदी ने आते ही अच्छे दिन नहीं दे दिए और इसका होना भी असंभव सा था । जिस प्रकार कांग्रेस ने गरीबी मिटाओ वाला जुमला कई दशको तक चलाया, भाजपा का ये कहना की मोदी के आते ही अच्छे दिन आ जायेंगे किसी जुमले से काम नहीं है ।
वैज्ञानिक न्यूटन ने कहा था “यदि मैंने दूसरों की तुलना में आगे देखा है, यह दिग्गजों के कंधों पर खड़े होकर ही कर पाया हूँ”। ये बात हर किसी के लिए लागू होती है । तो यह समझना की कांग्रेस ने देश कुछ नहीं किया गलत होगा । पर कांग्रेस का ये समझना की उनके कारण ही आज़ादी मिली और देश उन्होंने चलाया है एकदम गलत है ।
परन्तु इस समय हमारे सामने एक बड़ी समस्या आ गयी है । आज विपक्ष खासतौर पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मोदी की हर बात में कुछ नकारात्मक देख लेते है ।
मोदी की हर बात का मज़ाक उड़ाना कहा तक सही है । मोदी ने विकास के लिया जो किया है वह सही है या नहीं वो बाद में पता चलेगा । पर कुछ काम काफी अचे हुए है ।
सबसे पहला जन धन योजना । विपक्ष इसका मजाक उड़ा के कहते है की ये देखिए की कितना पैसा आया । जबकि देखने वाली बात यह है की गरीब का बैंक अकाउंट खुल गया है । कुछ समय पहले तक किसी गरीब को बैंक जाने के नाम से डर लगता था । कई बार उसे बैंक में अपमानित होना पड़ता था । इसके विपरीत जन धन योजना को जिस पैमाने पे चलाया किया गया है उसके कारण बैंक वाले अब गरीबो को ढूँढ ढूँढ कर उनका खाता खुलवा रहे है । गरीब ने बेशक बैंक पैसे न डाले हो पर आज नहीं तोह कल डालेगा । गरीबी मिटाओ का नारा देने वालो को ये नहीं दिख रहा की गरीब जो अब तक बिना पैसे के अपना इलाज नहीं कर पता था उसके पास अब बीमा है ।
योग के बारे में भी केजरीवाल और कांग्रेस ने मजाक उड़ाया । कहीं न कहीं ऐसा लगता है की हमारी संस्कृति को अगर आगे बढ़ने की बात की जाये तो कुछ लोग बोखला जाते है । योग में बुराई क्या है यह में अभी तक समझ नहीं पाया । वैसे इसमें भी सूर्य नमस्कार जैसे ओछी मानसिकता वाले मुद्दे उठाये गए और मीडिया ने उनका भरपूर साथ दिया । अगर किसी धर्म के लोगो को योग नहीं करना या सूर्य नमस्कार नहीं करना तो यह उनका मत है जिसका आदर करना चाहिए । परन्तु योग में सूर्य नमस्कार करना भगवाकरण कैसे हुआ यह समझ से परे है ।
यह तो वैसी बात हो गयी की कोई आपसे आपसे कहे की आप विज्ञान पढ़ा रहे है पर अगर विज्ञान में आपने आर्गेनिक पढ़ाया तो यह विज्ञान नहीं माना जायेगा और यह जबरदस्ती की जा रही है । योग में सूर्य नमस्कार का उल्लेख है तो लोग योग के साथ सूर्य नमस्कार करेंगे । जिनको नहीं करना वे न करे ।
उसी प्रकार भूमि अधिग्रहण बिल पे नकारात्मक विचार रखे गए । ऐसा बताया गया की जैसे ये किसानो के विरोध के लिए ही बनाया गया है । बेशक भूमि अधिग्रहण बिल में कुछ ऐसी बातें आई है जहा किसानो से जबरदस्ती से जमीन ली जा सकती है और इसमें कोई दो राय नहीं है की कुछ लोग इसका गलत उपयोग करेंगे । परन्तु इसे अलग तरह से समझते है । मान लीजिये की किसी गाँव में पानी की कमी है । पूरा गाँव सूखे की चपेट में रहता है । पास क गाँव से एक नदी जाती है । सूखे से प्रभावित गाँव के लिए सरकार को नहर बनानी है और इसके लिए वह नदी के पास वाले गाँव के कुछ किसानो से नहर बनाने के लिए ज़मीन लेना चाहती है । अगर ये किसान ज़मीन नहीं देंगे तो सरकार क्या करें? मेरी समझ से ऐसी परिस्थिति में सरकार को जबरदस्ती का हक़ होना चाहिए ।
अभी मोदी के बहार के दौरे में भी छोटी छोटी बातों को ले कर टीवी डिबेट हो रहे है । जिस अरविन्द केजरीवाल की पार्टी चंदा लेने में प्रसिद्ध है वह बाहर से आने वाले निवेश को भीख बता रहे है । तो क्या इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में जो कई लाख करोड़ का निवेश लगेगा उसके लिए सरकार को दुबई के शेख़ से चंदा माँगना चाहिए?
क्या राजनीति इतनी बड़ी हो गयी है की हम निवेश को भी भीख कहने लगे ।
देश की जनता ने एक ऐसा प्रधानमंत्री चुना है जो संसद में शीश झुकता है । यह प्रधानमंत्री विदेश की धरती पर भारत माता जी जय का उद्घोष करता है (वरना हमने ऐसे भी प्रधानमंत्री देखे है जो विदेश में जा कर सिर्फ उनके गुणगान करते है ) । स्वच्छ भारत मिशन के बाद से देश पहले के मुकाबले साफ़ दिख रहा है । स्टार्टअप तेजी से बढ़ रहे है । भारत में निवेश आ रहा है । रोड बनाने का काम तेजी से हो रहा है । देश के दूर दराज गाँव तक इंटरनेट लगाने का प्रयास किया जा रहा है । हरित ऊर्जा पे काम जोरों से चल रहा है । पहली बार देखा जा रहा है की भारतीय निवेशक बाहरी निवेशकों के भरोसे नहीं है । मेक इन इंडिया का नारा पुरे विश्व में घूम रहा है । भारत को संयुक्त राष्ट्र की स्थायी सदस्यता की मांग तेजी से बढ़ती दिख रही है ।
इस बीच छोटी छोटी बातों को ले कर अपने विश्लेषण देना और नकारात्मक विचारो को फैलाना कहा तक सही है ?