कविता

बस एक दिन ज़िन्दगी का, तुम मेरे साथ जी लो

एक दिन, बस एक दिन ज़िन्दगी का, तुम मेरे साथ जी लो। संदीप कुमार

एक दिन, बस एक दिन ज़िन्दगी का, तुम मेरे साथ जी लो।
उस दिन सुबह से शाम तक तुम मेरे साथ रहना।
जैसे बहता पानी नदियों संग, तुम मेरे साथ बहना।
जो भी हों ख़्वाब, जो भी हों शिकायतें तुमको।
उस दिन अपने दिल की मुझसे हर बात कहना।

एक दिन, बस एक दिन ज़िन्दगी का, तुम मेरे साथ जी लो।
उस दिन एक ही कप में चाय मेरे साथ पी लेना।
सब भूलकर उस दिन ज़िन्दगी मेरे साथ जी लेना।
ख़्वाब जो भी टूटे हों कभी, ज़िन्दगी में तुम्हारी।
मोहब्ब्त के सुई तागे से, एक बार फिर से सी लेना।

एक दिन, बस एक दिन ज़िन्दगी का, तुम मेरे साथ जी लो।
उस एक दिन तुमको अपने हाथों से खिलाना है मुझे।
फिक्र करता हूँ तुम्हारी बहुत , बस ये दिखाना है मुझे।
कितने खूबसूरत, हसीन ख़्वाब देखता हूँ मैं तुम संग।
तुम बिन हूँ मैं बहुत अकेला, बस यही बताना है मुझे।

एक दिन, बस एक दिन ज़िन्दगी का, तुम मेरे साथ जी लो।
उस दिन सामने बैठकर, मैं बस तुम्हारा दीदार करूँगा।
चुप बैठकर नजरों से ही, मैं इश्क़ का इजहार करूँगा।
तुम समझ पाई, मेरी नजरों की बातों को तो ठीक है।
वरना फिर पूरी ज़िन्दगी, मैं तुम्हारा इंतजार करूँगा।

एक दिन, बस एक दिन ज़िन्दगी का, तुम मेरे साथ जी लो।

मेरा नाम संदीप कुमार है। मेरी उम्र 34 वर्ष है। मैं उत्तराखंड के नैनीताल में रहता हूँ। कुमाऊँ यूनिवर्सिटी से स्नाकोत्तर किया है। वर्तमान में पत्रकारिता कर रहा हूँ। शायरी, कविता, व्यंग, गज़ल व कहानियां लिखने का बहुत शौक है। इसलिए अपनी सरल बोलचाल की भाषा में…

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