जीका वायरस और मंकी वायरस ने दी भारत में दस्तक।
भारत कई सालों से स्वाइन फ्लू और वर्ड फ्लू की चपेट में रहा है परंतु अब जीका वायरस व मंकी फीवर भी भारत में प्रवेश कर चुके हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अहमदाबाद में जीका वायरस से जुड़े तीन मामलों की पुष्टि की थी जीका वायरस ने अफ्रीका व साउथ एशिया देशों के बाद भारत में पहली बार दस्तक दी है जबकि मंकी वायरस पश्चिमी घाट में गोवा , केरल और महाराष्ट्र के किसानों में भी फैला हुआ है इस वायरस से गोवा के सत्तारी तालुका में एक 43 वर्ष की महिला की मृत्यु भी हो चुकी है।
आइए जानते हैं कि जीका वायरस और मंकी फीवर क्या है इनके लक्षण क्या है तथा इनके संक्रमण से कैसे बचा जा सकता है।
जीका वायरस-: जीका मुख्य रूप से एडीज प्रजातियों के संक्रमित मच्छर के काटने से फैलता है मच्छर की इसी प्रजाति से डेंगू भी होता है जीका के मुख्य लक्षण है-: तेज बुखार आना , बदन दर्द होना शरीर पर लाल चकते थकान सिरदर्द और आंखों का लाल होना आदि।
जीका वायरस के फैलने का समय 1 सप्ताह का होता है जीका वायरस से माइक्रोसेफली का खतरा उत्पन्न हो जाता है जिससे गर्भ में पल रहा शिशु जन्म के समय छोटे व अविकसित दिमाग के साथ पैदा होता है। इस वाइरस की वजह से शरीर के तंत्रिका तंत्र पर भी प्रभाव पड़ता है जिससे लोग लकवे के शिकार हो जाते हैं। मध्य अमेरिका व दक्षिण देशों में छोटी खोपड़ी के साथ पैदा होने वाले बच्चों की खबरों ने लोगों के दिमाग में डर उत्पन्न कर दिया है परंतु इस वायरस से डरने की वजाय जीका वायरस से बचने के लिए उपाय किए जा सकते हैं।
जीका वायरस को रोकने के उपाय-: डब्ल्यूएचओ के अनुसार जीका वायरस को रोकने का सबसे अच्छा उपाय है- मच्छरों की रोकथाम।।। आसपास गंदगी फैलाने से बचें कूलर, टब या अन्य जगह पर पानी न भरने दें। मच्छरों से बचने के लिए मच्छरदानी या मच्छर मारने वाली दवाओं का इस्तेमाल करें सफर करते समय बाहर का खाना खाने से वह गंदे स्थान पर ठहरने से बचें।
जीका वायरस के लिए कोई वैक्सीन अभी तक उपलब्ध नहीं है लेकिन वचाव ही किसकी बीमारी से बचने की सबसे बड़ी दवा है अधिक से अधिक तरल पदार्थों का सेवन करें जिससे शरीर में पानी की कमी न होने पाए।
मंकी फीवर-: मंकी फीवर ने भी पिछले महीने भारत में दस्तक दी थी। भारत के गोवा, केरल ,कर्नाटक और महाराष्ट्र के कुछ इलाकों से मंकी फीवर से जुड़े मामले सामने आए थे मंकी फीवर एक यान्नूर फॉरेस्ट बीमारी है जिसका पहला केस 1957 में सामने आया था अब तक यह सेंट्रल यूरोप, ईस्ट यूरोप और नॉर्थ इंडिया में पाया जाता था।।। मंकी फीवर की चपेट में सबसे पहले बंदर आए थे जिससे कर्नाटक के जंगलों में बंदरों की संख्या काफी कम हो गई थी जिसका कारण बाद में पता चला।।।। यह वायरस “फिलाविवाइरस” के समुदाय का था जिसका नाम था- टिक।। इससे होने वाली बीमारी को टिक वार्म एंसेफलाइटिस (TVE) कहा जाता है।
मंकी फीवर के लक्षण-: इस बीमारी का प्रकोप दिसंबर से मई के बीच में रहता है यह छूने से फैलने वाली बीमारी है जिसमें तेज बुखार, शरीर में कमजोरी महसूस होना, बदन दर्द , नाक व मसूड़ों से खून आना बुखार आना इस के मुख्य लक्षण है।
मंकी फीवर का इलाज– इस बीमारी का भी कोई टीका अभी तक उपलब्ध नहीं है तथा बचाव के द्वारा ही इस बीमारी से बचा जा सकता है। वैक्सीनेशन और इंफेक्टेड जानवरों से दूर रहें इस बुखार के ठीक होने की कोई समय सीमा नहीं है जो कुछ दिन भी ले सकता है और कुछ महीने भी।