ये हाड़-मांस की कैसी भूख
ये हाड़-मांस की कैसी भूख !
मृग-तृष्णा ये, दूर का सुख,
मत कर इसका व्यसन तू प्यारे,
कुत्ते की मत बन तू दुम ।
इंद्रियों को तू वश में कर,
लिप्सा में बिल्कुल मत फंस,
दलदल है ये बेहद गहरा,
जाएगा तू अंदर धंस ।
बाहर आना फ़िर नामुंकिन,
वासना का तू बनेगा जिन्न,
मन की बस पूजा कर प्यारे,
कामुकता में ना हो लीन ।
खोले लंपटता नर्क के द्वार,
जीते जी सब जाएगा हार,
फंस गया गर तू चंगुल में,
तेरा कर लेगी ये संहार ।
विलासिता तुझे लेगी डंस,
तुझे रुला वो लेगी हंस,
जितना जल्द, तू करले किनारा,
ज़हर घुलेगा हर नस-नस।
ध्यान केंद्रित कहीं और तू कर,
इसके चक्कर में मत पड़,
नष्ट करे दीमक के जैसे,
बहकाए ऐयाशी, लुभाए ठरक।