वि’व के सबसे बडे लोकतांत्रिक दे’ा में आज लोकतंत्र आहत है, आचरण अमर्यादित है,राजनीति दि’ााहीन है। पिछले दिनों रा”ट्रपति के चुनाव में जिस प्रकार राजनीति वस्त्रविहीन होकर सडकों पर उतरी है वो इस बात की ओर इ’ाारा करती हैे कि, अब समय आ गया है कि,लोकतंत्र की मर्यादा एवं ं गरिमा में आ रही गिरावट को रोका ही जाना चाहिये।
यहाॅ पर प्र’न यह नहीं है कि, किस राजनैतिक दल ने किस गठबंधन के उम्मीदवार को वोट दिया या किस राज्य में का्रस वोटिंग हुई प्र’न यह है कि, रा”ट्रपति पद के उम्मीदवार के खिलाफ भी आरोप लगाने से बचा नहीं जा सका। रामदेव और केजरीवाल जैसे बदजुबान लोगों को जिनका इस चुनाव से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कोई संबंध नहीं था उनको किसी ने रोकने का प्रयास नहीं किया स्वॅय उम्मीदवार संगमा ने भी निम्नस्तरीय प्रचार किया। यू.पी.ए. की बदजुबान औेर अमर्यादित व्यवहार के लिये अपनी पहचान बना चुकी सहयोगी ममता ने पहिले अपने मन से कलाम का नाम उछाल कर उस सम्माननीय व्यक्तित्व को विवाद में धकेला बाद में प्रणव मुखर्जी को समर्थन देने के लिये अभ्रदतम् दलील दी ।
गोया वो दे’ा के सर्वोच्च पद के लिये नहीं अपितु किसी गली मोहल्ले के लिये हो रहे चुनाव के लिये समर्थन दे रही हों। रही सही कसर फिल्म अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती ने पूरी करदी यह बता कर कि, ममता प्रणव दादा का समर्थन करने को तैयार ही नहीं थी। लेकिन उन्होंने ही इस बात के लिये ममता को सहमत कराया। सीधे सीधे दोनों ने प्रणव दादा पर अहसान जताया। यह लेाकतंत्र में मर्यादा का चीरहरण था। संभवतः यह पहिलीबार हुआ कि, रा”ट्रपति चुनाव राजनैतिक चुनाव बन गये। इस संबंध मे ‘ारद यादव के लोकदल तथा बाल ठाकरे की ’िावसेना ने दूसरे गठबंधन का हिस्सा होते ेहुये भी अपनी मान्यताओं के अनुसार बेहतर उम्मीदवार को अपना समर्थन देने का निर्णय लिया। लेकिन ’िावसेना ने समर्थन के बदले उनके ‘ापथ लेने से पहिले ही अफजलगुरु की दया याचिका को अस्वीकार करके उसे फाॅसी की सजा यथावत रखने की गुहार लगा कर दे’ा के सर्वोच्च पद को भी दबाव में लाने की स्तरहीन को’िा’ा की गई हैे।
राजनीति और राजनीतिज्ञ दोनों ही अपनी दि’ाा से भटक रहे हेै। इससे अधिक औेर क्या गैरजिम्मेदाराना आचरण हो सकता हे कि, दे’ा के कई भाग सूखे की ओर अग्रसर है, लेकिन जिस जिम्मेदार मंत्री को इस समय जनहित में इस त्रासदी से निपटनेका काम करना चाहिये था वो औेर उसकी पार्टी सरकार को इस बात के लिये ब्लेकमेल करने में व्यस्त रहा कि, उसे मंत्रीमंडल में नं दो का पद औेर उसके परिवार के सदस्य को मंत्रीपद ओैर चहेतों को राज्यपाल, राज्यसभा उपसभापति पद दे दिया जाये। जिस वक्त उन्हें अपने कार्यालय में बैठकर इस सूखे से निपटने के लिये कार्य योजना बनानी चाहिये थी वो बडी बे’ार्मी से अपने कार्यालयों से वाकआउट करके बैठे ंरहे तथा महामहिम के विदाई भोज में आना भी उचित नहीं समझा ।
आज हर राजनीतिज्ञ और दल का , राजनीति सफर ब्लकमेलिंग की बैसाखी पर निर्भर होता जा रहा हेंै। वरना दे’ा के कृ”िामंत्री को दे’ा के सूखे की जगह अपनी माॅगे मनवाने को प्रमुखता देना क्या नैतिकता की श्रेणी में है? यही राजनीति की गिरावट के सकेत है। जब तक राजनिति और राजनीतिज्ञों के आचरण गरिमामय, नैतिकता पूर्ण और लोंकतत्र के प्रति जवाबदेह नहीं होगें तब तक लोकतंत्र की गरिमा को क्षय होने नहीं बचाया जा सकता।ं यही वक्त है जब इन पर अंकु’ा लगाने कां। राजनीति में विरोध करना राजनैतिक दलों का सर्वमान्य अधिकार है। लेकिन इस विरोध की आड में संसंद नहीं चलने देना औेर वर्”ाों तक विधेयको को पारित नहीं होने देना, एक एतिहासिक राजनीतिक भूल है। इन राजनेताओं को यह स्मरण होना चाहिये कि, गुजरा हुआ प्रत्येक राजनीतिक क्षण इतिहास के पन्नों में दर्ज है और इतिहास के पन्ने हमे’ाा खंगाले जाते रहते है।
दे’ा नेतृत्व विहीन, राजनीति स्तरहीन, लोकतंत्र मर्यादाविहीन होता जा रहा हैं। दे’ा में चल रही सरकार केवल ‘‘कागजी-सरकार’’ है। मॅहगाई, अब उसे चितिंत नहीं करती, घटती हुई विकास दर उसकी पे’ाानी पर बल नहीं डालती, उसकी प्राथमिकता केवल, ममता,करुणानिधि और ‘ारद पवार है। उनके दबाव, के आगे वो जानबूझ कर कोई फैसला नहीं रही हेै। यही हाल जन लोकपाल और कालाधन का हैे। जन लोकपाल को इतने अधिक हाथों से गुंजारा गया हेै कि, वो अपना मूल स्वरुप ही खो चुका हैं, इसी प्रकार कालाधन का मुद्धा भी जानबूझ कर नहीं सुलझाया गया जिसनेे बाबा रामदेव औेर अरविंद केजरीवाल को उच्छंगल बना दिया है। उनका कोई भी कार्यक्रम बिना काॅग्रेस को कोसे पूरा नहीं होता है। कर्नाटक राजनीतिक अस्थिरता का केन्द्र बिन्दु बना हुआ हेै। वहाॅ भी राजनैतिक मर्यादा और अनु’ाासन तार तार हो चुके है।
आज कुछ कुछ हालात ऐसे ही है जब रोम जल रहा था ओैर नीरो चैेन से बांसुरी बजा रहा था। रुपया डालर के मुकाबले कमजोर पडे या मॅहगाई मे बेहता’ाा वृद्धि हो सरकार कुछ करने की इच्छुक ही नहीं दिख रही। इसी के चलते दे’ा में विदे’ाी निवे’ाक अपना हाथ खींच चुके है। और दे’ा का उद्योग जगत अपनी चमक खोता जा रहा है। ओद्योगिक उत्पादन इन विपरीत परिस्थितयों के चलते कम हो रहा है।
पाकिस्तान जैसे सबसे बडे आतंकवादी पो”ाक दे’ा के साथ विभिन्न स्तरों पर चर्चा का अभिनय अब उब पैदा करता है। पाकिस्तान किसी भी स्थिति में अपना हाथ किसी भी आतंकवादी हमले में होने से इंकार करता रहा है। अभी हाल ही में ब्रिटेन के एक अखबार ‘द सन’ के द्वारा किये गये एक स्टिंग आपरे’ान से पाकिस्तान में एक ऐसे गिरोह का पता चला जो दस लाख डालर लेकर किसी भी आतंकवादी को पाकिस्तान की ओलम्पिक टीम के स्पोर्ट स्टाफ के रुप में भेज सतिा था। पहिले तो पाकिस्तान ने अपनी आदत के अनुरुप इंकार किया तथा उस अखबार के विरुद्ध मानहानि की बात कही लेकिन बाद में उसे उस रेकेट के सदस्यों को गिरफतार करके मुकदमा चलाना पडा। बाबजूद इसके हमारे क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने उसी आतंकवादी एवं मैच फिक्सर खिलाडियों के साथ श्रंखला का कार्यक्रम घो”िात कर दिया। यह भारतीय नेतृत्व की असक्षमता और मजबूरी का प्रतीक है।
बहरहाल इन विपरीत परिस्थितियों मेंे भारत के युवाओं से बहुत आ’ााएंें है। हमारे युवा हर एक क्षेत्र में अन्र्तरा”ट्रीय स्तर पर दे’ा को गौरवान्वित कर रहे है। आईये सभी को दे’ा के स्वतंत्रता दिवस की बधाई।