विवेक पे निर्भर … तो रहते हैं देव

विवेक पे निर्भर … तो रहते हैं देव

जिस काम में डालूँ हाथ,
वो होता यकीकन बर्बाद,
छिन्न भिन्न होते जज़्बात,
डगमगा जाता आत्मविश्वास ।

जितनी फूँकूं काम में जान,
आधी फ़सल भी ना तैयार,
समय निवेश पानी सा बहाव,
हाथ में कुछ ना आए जनाब ।

मार्ग गलत या महनत ज़्यादा,
कुछ ना कुछ गड़बड़ घौटाला,
फ़ल ना पाऊं बीज जो डाला,
इस गुत्थी को है सुलझाना ।

कामों की प्राथमिकता सही ?
या उनमें ही चूक हुई ?
कहीं ना कहीं तो कमी हुई,
जिससे भारी भूल हुई ।

सोचूं बहुत पर समझ ना आता,
इसका हल मैं खोज ना पाता,
भला बुरा ओर सुनता जाता,
निर्णय कुछ अब ले नहीं पाता ।

आशा की किरण काश दिख जाए,
जो खोया विश्वास दिलाए,
साथ में धीरज कुंजी आए,
विवेक से सब हासिल हो पाए ।

स्वरचित – अभिनव ✍🏻

कविता