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खुशियों के दीप जलें हैं तुम पर हरिताभा-सी छाई है | विरहिणी की दीवार पर विरहाग्नि-सी लौट आई है || किससे और क्यों कहें ? इस दिले चमन की दास्तां | हमने तो हर दिन और रात विरह के दीप जलाए हैं ||