भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का इतिहासलेखन पर्याप्त शोध, जानकारी की अल्पता की वजह से अनेक क्रांतिकारियों के बलिदान, शौर्य, औेर देशभक्ति को समावेशित नहीं कर पाया या यू कहें कि, उनके त्याग ओैर बलिदान को इतिहास के पन्नों पर पर्याप्त स्थान नहीं दे पाया। एसा ही एक उदाहरण वर्तमान हरियाणा राज्य के सोनीपतजिले के गाॅव लिबासपुर के महान क्रांतिकारी शहीद उदमीराम का है।
महान क्रांतिकारी उदमीराम 1857 में अपने गाॅव के नम्बरदार थे। देशप्रेम और स्वतंत्रता के जज्बे से ओतप्रोत उदीराम और उनकी पत्नी पर अंग्रेजों द्वारा किये गये अत्याचार रोंगटे खडे कर देने वाला है। उन्हें तथा उनकी पत्नी को पीपल के पेड पर कीलों से ठोंक कर 35 दिनों तक भयंकर यातनाएं दी गई। उनके पिता, मित्र, रिश्तेदार यहाॅ तक कि, पूरे गाॅच को भयंकर यातनाएं दी गई। आज भी लिबासपुर के लोगों में उस भयंकर यातनाओं की स्मृति शेष हैं। लेकिन ऐसे देशभक्त, महान क्रांतिकारी को बहुत कम लोग जानते है। यह हमारे देश की बिडबंना हैे कि, उस महान क्रांतिकारी के वंशज विपन्नता के बहुत बुरे दौर से गुजर रहे है और अंग्रेजी यंत्रणाओं के मुख्य सूत्रधार उस मुखबिर के वंशज के नाम पूरे गाॅव की जमीने है।
उदीराम ने क्षेत्र के युूवाओं को एकत्र कर क्रांतिकारी संगठन बनाया, वे अपनी गतिविधियों को अत्यन्त गोपनीय तरीके से अंजाम देते थे ओर भूमिगत हो जाते थे। लिबासपुर गौव सोनीपत राष्ट्रीय राजमार्ग पर है जहाॅ से अक्सर अंग्रेज अफसर अपने पूरे लाव-लष्कर के साथ गुजरते थे।यह दल उन पर हमला कर निकट की खाडियों के हवाले कर देता था।
इसी क्रम में एक बार उन्होने एक अंग्रेज अफसर के काफिले को निशाना बनाया। उसके साथ उसकी पत्नी भी थी। उन्होने उसकी पत्नी को निकट के गाॅव भालगढ में एक विधवा ब्राम्हणी के घर पर रखवा दिया और उसका पूरा- पूरा ख्याल रखने का कहा। आस पास के ग्रामीणों को जब इस घटना का पता चला तो वे कौतुहलवष उसे देखन भालगढ आने लगें। अ्रग्रेजों के मुखबिर भी चारों ओर फैले हुये थे। निटि के गाॅव राठधाना के मुखबिर सीताराम को समाचार मिला तो वे भी भालगढ पहुॅचे ओर उस महिला से मुलाकात की। उसने उस महिला को डराया कि, मुझे पता चला है कि, क्रांतिकारी कुछ ही दिनों में तुम्हें मौत के घाट उतारने वाले है। यह सुनकर महिला घबरागई और सीताराम से कहा कि, वो किसी भी तरह उसे पास के अंग्रेज केम्प में सुरक्षित पहुॅचा दे। सीताराम तो यही चाहता था वो रात के अंधेरे में उस महिला को लेकर पानीपत के अंग्रेज केम्प में पहुॅच गया और अंग्रेज अधिकारियों को घटना की पूरी जानकारी दी और बताया कि, इस दल का मुखिया उदीराम है। जाानकारी प्राप्त होने पर अंग्रेजों की बाॅछें खिलगई। और उन्होने उदीराम और उसके परिवार के लोगों को सबक सिखाने की योजना तैयार की। इसमें उनकी पूरी पूरी सहायता अंग्रेजों के मुखबिर सीताराम ने की।
योजना के अनुसार एक दिन तडके अंग्रेज अफसर भारी पुलिस बल के साथ लिबासपुर गाॅव में वहुॅच गये और गाॅव पर हमला बोल दिया। उनके सामने जो भी आया चाहे वे महिलाएं हों बुजुर्ग हों या बच्चे उन्होने उन्हें भयंकर यातनाएं देना शुरू कर दिया। उदीराम और उनके साथी जो भूमिगत थे उन्हें मजबूर होकर आत्म समर्पण आना पडा बस फिर कया था अंग्रेजो का कहर उदीराम और उनके साथियों तथा उनकी पत्नी पर टूट पडा। उनका निशाना प्रमुख रुप से उदीराम ओर उनकी पत्नी थे। वक उसे मारते पीटते घसीटते गाॅव के रेस्ट हाउस तक ले गये जहाॅ उन दोनों को पीपल के पेड पर कीलों से ठोंक दिया और यातनाऐ देते रहे। उदीराम के साथियों को सडक कूटने वाले कोल्हू से रोंद दिया गया। कुछ दिनों तक भयंकर यातनाऐ सहने के बाद उनकी पत्नी ने दम तोड दिया। 35 दिनों तक यातनाऐ सहने के बाद उदीराम भी शहीद हो गये।
अंग्रेज अपनी सफलता पर बहुत खुश हुये औेर ईनाम में गाॅव वासियों की पूरी जमीन छीन कर मुखबिर सीताराम के नाम करदी । आज भी वो जमीन मुखबिर सीताराम के वंशजो के नाम है और गाॅव वासी अपनी जमीन वापिसी के लिये संघर्ष कर रहे है।
इसका सबसे दुःखद पहलू यह है कि, उदीराम के वंशज कठिन आर्थिक विपन्नता के दोर से गुजर रहे है। वर्षो से सरकारों गुहार लगाने के बाद भी उनकी सहायता किसी ने नहीं की। काश उदीराम और उसके साथी किसी जाति विशेष के होते जो वोट बैंक होती तो संभवतः अनेक पाटियाॅ उनकी कहानी पर घडियाली ही सही आॅसू तो बहाती।
बहरहाल इस महान क्रांतिकरी शहीद उदीराम के स्वतंत्रता संग्राम में दिये गये योगदान का स्मरण और नमन करते हुये उन्हें विनम्र श्रंद्धाजलि।