स्वतंत्रता – वरदान या अभिशाप …
गुमसुम नादान,
अचंभित हैरान,
बांहें फैलाए,
खड़ा हर इंसान ।
आया यकायक याद,
हुई आज आबाद,
है मेरा दिवस,
मेरी वर्षगांठ ।
आज़ादी इतराई,
थोड़ा मुस्काई,
थी चेहरे पे,
रंगत जो छाई ।
वो हिन्द की जान,
उसका ईमान,
छीनने से पाई,
ना मिली थी दान ।
कुर्बान हुए,
कई काँपी रूहें,
उनकी ही बदौलत,
आज़ाद हुए ।
देशभक्तों की साथी,
बेहद जज़्बाती,
उनके ही दम पर,
ख़ुश थी आज़ादी ।
उसका नहीं मोल,
स्वतंत्र माहौल,
एक उम्दा अनुभूति,
अभिव्यक्ति का दौर ।
खुली फ़िज़ा में श्वास,
कुछ करने की आस,
ईश्वर की कृपा,
एक अनुभव खास ।
जीवन की कमान,
ये एक वरदान,
सबको करना,
इसका सम्मान ।
इसकी पर कद्र,
करते नहीं सब,
है टूट रहा,
इसका अब सब्र ।
नेता अभिनेता,
कोई कुछ भी कहता !
नाजायज़ प्रयोजन,
रग रग में बहता ।
कुछ रखते याद,
बस हक अधिकार,
जब फ़र्ज़ की बारी,
फ़िर सब सुनसान ।
ये कुछ ही लोग,
दीमक और रोग,
आज़ादी का,
करें दुष्प्रयोग ।
धर्म पर विवाद,
और आतंकवाद,
कुंठित आज़ादी,
करे बस फरियाद ।
अब निकाले जाएं ,
अनुचित अभिप्राय,
चाहिए आज़ादी,
कुछ शख़्स चिल्लाएं ।
उसके जज़्बात,
उसके हालात,
समझे ना कोई,
मिली जैसे ख़ैरात ।
२०० साल,
अंग्रेजों का राज़,
उसके पश्चात,
राजनीति का नाच ।
ब्रिटिशर्स से ज़्यादा,
अपनों ने नवाज़ा,
लूटा, खसोटा,
दिया झूठा झांसा ।
डरी पड़ी है,
ख़ुद से ही लड़ी है,
कैसे बचे आबरू ?
मुश्किल में पड़ी है ।
जिनको पाला,
दिया अपना निवाला,
वे निकले गद्दार,
खोखल कर डाला ।
क्या क्या ना सहे !
किस किससे कहे !
कोने में सिसके,
बस आंसू बहें ।
देखे वो जहां,
मतलब ही खड़ा,
रोए है धरती,
नभ भरा पड़ा ।
असमंजस के भाव,
जश्न या संताप,
सोचे हर पल कि,
वरदान या अभिशाप !
इससे पहले कि,
हो जाए ना देरी,
हिफाज़त से रखें,
ये किस्मत तेरी मेरी ।
स्वरचित – अभिनव