सुशांत का दुखांत
हूं मैं निशब्द,
बिल्कुल ही स्तब्ध,
जब चला पता,
सुन्न, स्थिर, हूं हिला ।
होए ना विश्वास,
लगे अभी भी पास,
सबका वो चहेता,
सच्चा अभिनेता ।
लांघी हर मझधार,
वो था दमदार,
अपने दम पर,
खड़ी की दीवार ।
था ज़मीं से जुड़ा,
दिल बहुत बड़ा,
था बेहतरीन,
लायक रंगीन ।
बाहर था शांत,
मौन चुप सुशांत,
अंदर तूफ़ान,
तन्हा सुनसान ।
यौवन का राजा,
हीरा था तराशा,
उससे थी आशा,
देता था दिलासा ।
लाखों में एक,
वो था एक शेर,
था छला गया ?
सो चला गया ।
ना शिकवे गिले,
थे होंठ सिले,
सबकी वाहवाही,
कभी नहीं बुराई ।
था बेहद मज़बूत,
पक्का था वजूद,
जीवंत व खुशदिल,
बिल्कुल ना बुज़दिल ।
बहुतों का सहारा,
उनका था किनारा,
था पढ़ा लिखा,
कर्मों से दिखा ।
तारों का दोस्त,
हंसमुख मदहोश,
जो बना मिसाल,
क्यों मानली हार ?
क्या हुई खता ?
ख़ुद को दी सज़ा !
मेहनती निपुण,
क्या नहीं थे गुण !
बस था शर्मीला,
इसका ही सिला ?
चड़ा सफलता सीढ़ी,
जिसे तरसे पीढ़ी ।
क्या था अवसाद ?
साझा ना बात !
दिल करता हल्का,
कुछ पर ना छलका ।
किसने उसे निगला ?
सूरज था ढला,
क्या चीज़ गई खा ?
क्या हुआ गुनाह ?
भाई भतीजावाद ?
या नारी से बर्बाद ?
ये एक पहेली,
हुई गंगा मैली ।
इतनी कामयाबी,
इतनी सारी शोहरत,
फ़िर भी बेताबी,
फ़िर भी बेबस !
वो था जीवंत,
कलयुग का संत,
वो एक महंत,
क्यों ऐसा अंत ?
खुशनुमा मुस्कान,
वो गाल में गड्डे,
ज़िंदादिल इंसान,
पीछे अच्छे अच्छे ।
हूं मैं हैरान,
क्या था अवसाद ?
क्यों था परेशान ?
वो मेरी जान,
मेरा अरमान,
खुशनुमा इंसान,
था वो नादान,
था एक मिसाल ।
आंखों का तारा
वो एक किनारा,
मेरी पाठशाला,
वो जैसे हमारा ।
हो गया गुम,
हूं मैं गुमसुम,
धरा भी है नम,
रोये है नभ ।
ख़ुद में है देखी,
मैंने उसकी आभा,
ऊर्जा का लिफ़ाफ़ा,
ओझल, हूँ अभागा ।
जो भी किरदार,
डालता था जान,
वो एम एस धोनी,
अदाकारी रो दी ।
वो जैसे बसंत,
वरदान नीलकंठ,
कभी ना मन घड़ंत,
दिल शीशा स्पष्ट ।
था बहुत दयालु,
ना बिल्कुल चालू,
चेहरा था सुंदर,
मन और धुरंदर ।
हर कोण सम्पूर्ण,
हुनर से परिपूर्ण,
बिल्कुल ही निपुण,
थक जाएं गुण ।
परिश्रमी कर्मठ,
बिल्कुल ना हठ,
ओजस्वी तेजस,
प्रेरक दिलकश ।
चक्रव्यूह में फंसा ?
वो कहां धंसा ?
कलाकार मंझा,
असली शहंशाह …
असली शहंशाह …
स्वरचित – अभिनव ✍🏻