उत्तर: इस कार्य में भलाई नहीं है। कार्य की सफलता में संदेह है।
चौपाई : उघरहिं अंत न होइ निबाहू। कालनेमि जिमि रावन राहू॥
अर्थ:- जो (वेषधारी) ठग हैं, उन्हें भी अच्छा (साधु का सा) वेष बनाए देखकर वेष के प्रताप से जगत पूजता है, परन्तु एक न एक दिन वे चौड़े आ ही जाते हैं, अंत तक उनका कपट नहीं निभता, जैसे कालनेमि, रावण और राहु का हाल हुआ
राम चरित मानस में स्थान : यह चौपाई बालकाण्ड के आरम्भ में सत्संग वर्णन के प्रसंग में है।
सु | प्र | उ | बि | हो | मु | ग | ब | सु | नु | बि | घ | धि | इ | द |
र | रु | फ | सि | सि | रहिं | बस | हि | मं | ल | न | ल | य | न | अं |
सुज | सो | ग | सु | कु | म | स | ग | त | न | ई | ल | धा | बे | नो |
त्य | र | न | कु | जो | म | रि | र | र | अ | की | हो | सं | रा | य |
पु | सु | थ | सी | जे | इ | ग | म | सं | क | रे | हो | स | स | नि |
त | र | त | र | स | हूँ | ह | ब | ब | प | चि | स | हिं | स | तु |
म | का | ा | र | र | म | मि | मी | म्हा | ा | जा | हू | हीं | ा | ा |
ता | रा | रे | री | हृ | का | फ | खा | जू | ई | र | रा | पू | द | ल |
नि | को | गो | न | मु | जि | यँ | ने | मनि | क | ज | प | स | ल | हि |
हि | रा | मि | स | रि | ग | द | न्मु | ख | म | खि | जि | जि | त | जं |
सिं | ख | नु | न | कौ | मि | निज | र्क | ग | धु | ध | सु | का | स | र |
गु | ब | म | अ | रि | नि | म | ल | ा | न | ढँ | ती | न | क | भ |
ना | पु | व | अ | ा | र | ल | ा | ए | तु | र | न | नु | वै | थ |
सि | हूँ | सु | म्ह | रा | र | स | स | र | त | न | ख | ा | ज | ा |
र | ा | ा | ला | धी | ा | री | ा | हू | हीं | खा | जू | ई | रा | रे |