श्री लाल बहादुर शास्त्री …
मुगलसराय ख़ुशक़िस्मत,
हुई जैसे रहमत,
खुल गए कपाट,
अवतरित भू का लाल ।
साफ़ सुथरी छवि,
आभा जैसे रवि,
जन्म दो अक्टूबर,
नतमस्तक अम्बर ।
आठ महीने बाद
पिता स्वर्गवास,
ननिहाल में शिक्षा,
वहीं बचपन बीता ।
सादगी से चर्चित,
चाहा सबका हित,
अभावों में बसर,
विचार उच्च मगर ।
दूसरे प्रधानमंत्री,
कुशल नेतृत्व के धनी,
क़ाबिल व कर्मठ,
विपक्ष करता था इज़्ज़त ।
दिया ऐसा नारा,
पूरा हिन्द संवारा,
‘जय जवान-जय किसान’,
अहम संदेश, पूरा ध्यान ।
देश को कर डाला मजबूत,
एकता की नींव रक्खी ख़ुद,
अहिंसा सत्य पे पूरा ज़ोर,
अद्भुत काया, थे पुरज़ोर ।
दृढ़ अनुशासन व संकल्प,
जिससे किया पाक को पस्त,
ना दिया था तिरंगा झुकने,
दुश्मन ने टेके थे घुटने ।
स्वच्छ् चरित्र के थे रचयिता,
असली मायनों में राजनेता,
भाईचारा व अखंडता संजोई,
प्रगति की फ़सल थी बोई ।
देश को देदी नई उड़ान,
गरीबी दुःख किया आत्मसात,
याद रहेगा उनका योगदान,
वे जैसे हीरों की खान ।
देश के प्रति निभाई निष्ठा,
दिल से पालन हर एक रिश्ता,
देश प्रेम की थे मिसाल,
वादे पूरे, जो भी हाल ।
ऐसे वीर पर सबको गर्व,
उनका जन्म जैसे है पर्व,
आज़ादी के लिए संघर्ष,
हम सबके लिए आदर्श ।
माना गांधी जयंती हैं सब मनाते,
सूरज को भी बादल ढक जाते,
उनका महत्व भूल सकते नहीं हम,
श्री लाल बहादुर शास्त्री हममें हरदम ।
स्वरचित – अभिनव ✍