।। समझ बैठे ।। कविता || शशिधर तिवारी ‘ राजकुमार ‘

।। समझ बैठे ।।

तेरी सारी ख्वाहिशों को ,

हम हमारी रहमत समझ बैठे।

तेरी होंठो की मुसकुराहट को ,

तो हम हमारी चाहत समझ बैठे ।

तेरी ज़ुल्फो की घटाओ को ,

हम हमारी अमानत समझ बैठे ।

तेरी नयनों की पलकों को ,

तो हम हमारी इबादत समझ बैठे ।

तेरी कानों की बालियो को ,

हम हमारी जमानत समझ बैठे ।

तेरी झूठी मुहब्बत को ,

हम हमारी जिंदगी समझ बैठे ।

हा गलती हमारी जो तेरे इंतजार को ,

तो हम हमारी इकरार समझ बैठे ।

हा गलती कर दिया हमने ,

सजा दो हमे जो तुम्हे अपना समझ बैठे ।

समझ बैठे , समझ बैठे ,

जो तेरी ख़ामोशीयो को ,

हम तेरा इजहार समझ बैठे ।

जो हम किसी पराए को ,

अपने दिल का ताज समझ बैठे ।

शुक्रगुज़ार हूँ मैं तेरे शब्दों का जिनसे तुने इनकार किया ;

वरना लोगो के बहकावे में ,

हम खुद को खामाखाहि कवि समझ बैठे ।

kavitapoem
Comments (2)
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  • Kamal singh bohra

    “Kuch man ki baat”

    Me aaya tha Akela
    Or Akela hi rah gaya
    Is bhid me jane
    kaha kho gaya
    Me udata hu to
    Muje apna koi daba jata he
    Mere sapno ko koi
    Kuchal sa jata he
    Me kuch karna chahta hu
    Kuch banker dikhana chahta hu
    Koi sath to de mera
    Hosla na todo mera
    Me kuch karna chahta hu
    Me kuch karna chahta hu……….

    Kamal singh bohra
    Udaipur, rajasthan

    • MeriRai

      bahut khoob