रोहित सरदाना,
शख़्स जाना माना,
कहीं चला गया,
पता नहीं कहां !
था बड़ा सटीक,
छवि बेहद निर्भीक,
देता था सीख,
ना दहाड़, ना चीख़ ।
देखे सुने बिन,
ना कहता था,
जो कहता था,
रस बहता था ।
स्पष्ट वक्ता था,
सब परखता था,
जब हँसता था,
बड़ा जचता था ।
गज़ब था वो,
इसमें नहीं शक,
उसकी मांग,
शायद नभ पर ।
काया चाहे रही,
उसकी आज तक,
यादें रहेंगी पर,
जन्मांतर तक । ✍🏻