राममय अब है संसार

सुन्दर चरित्र की कल्पना, 

होते ही मन में, राम तुम |

त्याग, निष्ठा, धर्म, ज्ञान, 

की परिभाषा, बस, राम तुम |

वायु, धरा के, अंश-अंश में, 

हो समोप्त, मेरे आराध्य; 

धन्य जीवन हो गया, 

राममय अब है संसार |

हर मन में राम, चेतना में राम, 

तुम में सम्मलित, चारो ही धाम; 

तुम ही प्राण, तुम ही आधार, 

सृष्टि के तुम पालनहार |

हे रघुवीर, मेरे घनश्याम

तुम अनंत, सदैव विद्यमान,

कृपा करें प्रभु आशीष दें

श्री अयोध्याजी पुनः विराजिए |

कविताधर्म