रफ़ाल – बेमिसाल
रफ़ाल,
तूफानी चाल,
दुश्मन बेहाल,
जी का जंजाल ।
करे तेज़ प्रहार,
माने नहीं हार,
बेहद असरदार,
सिर पे ये सवार ।
आधुनिक विज्ञान,
ये लड़ाकू विमान,
भारत की जान,
थामी है कमान ।
ना निशाना चुके,
गहरे मंसूबे,
शत्रू पे टूटे,
सबकुछ ये ढूंढे ।
है जैसे गोली,
शूरवीर है टोली,
पूरी दुनिया बोली,
ना आंख मिचौली ।
हुई बोलती बंद,
वैरी हुआ तंग,
वजह इसकी गंध,
ज़ुल्म होगा अंत ।
हिन्द का गुलदस्ता,
इससे है महका,
गुलशन है चहका,
शत्रू ना कहीं का ।
बरसों की मेहनत,
हुई अब है सार्थक,
आई इसकी आहट,
फ़ख़्र गर्व व चाहत ।
बिल में है भागे,
वैरी अब कांपे,
रेखा ना लांघे,
ये सबसे आगे ।
हुई बत्ती गुल,
दुश्मन गुमसुम,
औझल व गुम,
घर में अब दुम ।
इसकी आवाज़,
जैसे कोई बाज़,
मुझे इसपर नाज़,
मेरा अहसास ।
चुन चुनके मारे,
ये एक, वे सारे,
जो थे हत्यारे,
वो पानी मांगें ।
ये सौ के बराबर,
शत्रू घबराकर,
भागे जान बचाकर,
ये जैसे दिवाकर ।
ये वीर बहादुर,
मारे ये घर घुस,
शत्रू अब है फुस,
बहुत लिया लहू चूस ।
ये आँख दिखाए,
दुश्मन थर्राए,
बिल्ली बन जाए,
औक़ात पे आए ।
वैरी की शेख़ी,
इसने ना देखी,
जो भी था फ़रेबी,
हुई जेब है ढीली ।
मुँह की खाएंगे,
जो उकसाएंगे,
परेशान करेंगे,
तो पिट जाएंगे ।
है तिरंगा झूमे,
जब इसको देखे,
बड़ी आस लगाए,
बैठा अरसे से ।
इसका आगाज़,
लगे चार हैं चाँद,
वैरी छुपा मांद,
ये मेरी शान …
अभी कलम से – अभिनव ✍