आज 22 अप्रैल पृथ्वी🌏 दिवस के उपलक्ष्य में मैं अपने विचार आप लोगों के साथ साझा करने जा रहा हूं|
“पृथ्वी” इस शब्द का उच्चारण हम मानव जाति जितनी सरलता और सुगमता से करने में सक्षम हैं उतने ही अबोध, असमर्थ और अपरिपक्व इसके महत्व को समझने में हैं । जैसा की आप सबको विदित होना चाहिए कि पृथ्वी यानी धरती को हमारे भारतीय संस्कृति में माता की संज्ञा से संबोधित किया गया है क्योंकि धरती माता के पास वे सारे गुण मौजूद हैं जो एक मां के पास व्याप्त होता है ।
यह हमारे सौरमंडल का मात्र एक ऐसा ग्रह है जहां सफलतापूर्वक जीवन यापन के लिए वे सारे संसाधन जैसे- वायु,जल, मृदा, सूर्य का अलौकिक प्रकाश और खनिज संपदा मौजूद हैं जिसकी परिकल्पना हम किसी और ग्रह पर नहीं कर सकते ।
अब सबसे निंदनीय बात यह है कि जब से मानव जाति अपने स्वार्थ को फलित और वर्धित करने के उद्देश्य को अपना परम कर्तव्य समझने लगा है उसी समय से हमारी अलौकिक सस्य श्यामला पृथ्वी की आयु जो कि हमारे वैज्ञानिकों द्वारा पूर्व निर्धारण के अनुसार 4.5 अरब वर्ष है वह धीरे-धीरे विपरीत दिशा में गतिमान होने लगी है ।
मनुष्य अपने मस्तिष्क का प्रयोग कर उन सारी भोग विलासिता के वस्तुओं को बनाने में समर्थ है जिसे बनाने में हम उन सारी प्रकृति प्रदत वस्तुओं का विदोहन करते हैं जो कि हमारे लिए और हमारे आने वाले भविष्य के लिए अत्यंत उपयोगी है । आज के इस दौर में बड़े-बड़े फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं जो कि एक हानिकारक गैस होते हैं उनका किसी तरह से शुद्धीकरण ना करके सीधे तौर पर वायुमंडल में छोड़ दिया जाता है जिसके कारण वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य विषैली गैसों की मात्रा दिन-प्रतिदिन तीव्र गति से बढ़ता दिखाई दे रहा है और जो कि हमारे वायुमंडल को दूषित करने में अपना सहभागिता सुनिश्चित कर रहा है ।
इन्हीं बड़े बड़े कल कारखानों से निकलने वाले दूषित जल जिसे हम बिना शुद्धिकरण के ही स्वच्छ और निर्मल नदी के जल धाराओं के साथ प्रवाहित कर देते हैं जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव उन सभी निर्दोष जलीय जीवो पर देखा जा सकता है । हमारे भारतीय संस्कृति में गंगा नदी को मां का दर्जा प्रदान किया गया है जिसका उपयोग विभिन्न रूपों में शुद्धिकरण के लिए किया जाता है लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि आज वही नदी अपनी स्वच्छता और निर्मलता को सत्यापित करने में असमर्थ है ।
अब जब हम 1960-70 के समय काल का आकलन करते हैं तो यह स्पष्ट होता है कि इसी समय काल से मृदा प्रदूषण में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी होने लगी क्योंकि यह दौर हरित क्रांति का था जिसके अंतर्गत रासायनिक उर्वरक कीटनाशक और कई तरह के रासायनिक उत्पादों को प्रयोग में लाया जाने लगा । इन सबों का मुख्य कारण मनुष्य ही था क्योंकि उस दौरान बढ़ती जनसंख्या को खाद्यपूर्ति के लिए यह कदम उठाना अत्यंत ही आवश्यक था। अगर हम अपनी इस तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करने में सफल हो जाते हैं तो शायद आज भी सोना उगलने वाली उपजाऊ भूमि उसी रूप में होती ।
हमारे इस पूजनीय और आश्रय दाता भूमि को प्रदूषित करने का एकमात्र कारण बड़े-बड़े कल कारखाने ही नहीं वरन वे सभी मानव जाति व्यक्तिगत रूप से दोषी हैं जो कहीं ना कहीं इसे दूषित करने में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपना भागीदारी सूचित कर रहे हैं ।
ऐसा नहीं है कि इन सभी समस्याओं के समाधान पर किसी का विचार नहीं हुआ होगा परंतु यह विचार किसी एक के मन में क्यों है प्रत्येक व्यक्ति अपनी जागरूकता सूचित क्यों नहीं करता क्या वह अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन इन सब समस्याओं का समाधान ढूंढने में सक्षम थे ? अगर ऐसा ही है तो इस पृथ्वी पर प्रत्येक मनुष्य को उनके प्रति अपना आभार प्रकट करना चाहिए और उस सोच को अपनाना चाहिए जिससे उन्होंने पूरे 192 देशों के नागरिकों को परिचय करवाया था ।
अब मेरा सवाल यह है की जिसके दया और कृपा से हम मनुष्य अपना भोग विलास तक के जीवन को सक्षम और सफल बना पा रहे हैं तो उस पृथ्वी के नाम केवल 22 अप्रैल ही क्यों ? क्या ऐसा संभव नहीं हो सकता कि प्रत्येक महीने कम से कम 1 दिन के लिए इस परोपकारी और दयावान धरती मां को सेवा प्रदान कर अपने जीवित होने का प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत करें ?
अगर ऐसा संभव है तो मैं तो यही चाहूंगा कि हमारी भावी सरकार अपनी नीतियों में कुछ संशोधन करें और इसे इस तरह से प्रस्तुत करें जिसमें प्रत्येक नागरिक की सहभागिता सुनिश्चित हो सके । जन जन की जागरूकता और सहभागिता ही एकमात्र ऐसा शस्त्र है जिसके सदुपयोग से हम सब अपनी इस धरती मां की अलौकिक सौंदर्यता को बनाए रखने में सफल हो पाएंगे ।
निष्कर्षतः मैं यही कहना चाहूंगा कि हम सबों को पृथ्वी दिवस केवल 22 अप्रैल को ही ना मना कर हम हर उस दिन मना सकते हैं जिस दिन हम पेड़ लगाएं जल संचयन का शपथ लें या कूड़ा कचरा के पुनर्चक्रण का प्रावधान सुनिश्चित करें । सही मायने में पृथ्वी दिवस तो उस दिन को माना जाएगा जिस दिन से बड़े-बड़े कल कारखानों से निकलने वाले विषैले गैसो और दूषित जल को बाहर निष्कासित करने से पहले उसका शुद्धिकरण किया जाएगा और जिस दिन से जंगलों की अंधाधुंध कटाई प्राकृतिक प्रदत्त खनिज संपदा के वीदोहन पर लगाम लग जाएगा ।
हमें यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि “धरती है तो हम हैं हमारी इच्छाएं हैं हमारे आशाएं हैं और जीने के सारे उद्देश्य जीवित हैं ।”
धन्यवाद🙏🏻