कलियुग – कविता

कलियुग सब खेल विधाता रचता हैस्वीकार नहीं मन करता हैबड़ों बड़ों का रक्षक कलियुगयहां लूट पाट सब चलता है || जो जितना अधिक महकता हैउतना ही मसला जाता हैचाहे जितना भी ज्ञानी हो ,कंचन पाकर पगला जाता हैचोरी ही रोजगार है जहाँअच्छा बिन मेहनत के मिलता हैबड़ों बड़ों का रक्षक कलियुगयहां लूट पाट सब चलता […]

अजय कीर्ति छद्म रचनाएँ – 4

इश्क का ऐसे ना इज़हार कर,तेरे नैनों से मुझपे ना वार कर ।मै‌ इश्क का मारा हूं ,मेरी सलामती की दुआ कर ।। अजय महिया नोहर, हनुमानगढ़ मेरी गज़लों से मेरा एतबार करनाप्यार हो जाए तो इकरार करना ।ये ज़िन्दगी है पल-दो-पल कीशाम ढ़ल जाए तो इंतज़ार करना ।। अजय महिया नोहर, हनुमानगढ़ मुझे उनकी […]

वीवो आईपीएल २०२१

सिक्सर कौन लगायेगा  कौन नाम बनायेगा  किसके सिर पर सजेगा ताज  यह अब तय हो जायेगा  सही गिरेगी गुगली या स्विच हिट लग जायेगा  बाउंसर गुजरेगी कानों से  या हुक शॉट खेला जायेगा  क्या गेंद रहेगी नीची या सिर से टकरायेगी  क्या पिच लेगी स्पिन या ओस साथ निभायेगी  कौन लक्ष्य को भेदेगा ,कौन जश्न […]

विवेक पे निर्भर … तो रहते हैं देव

विवेक पे निर्भर … तो रहते हैं देव जिस काम में डालूँ हाथ,वो होता यकीकन बर्बाद,छिन्न भिन्न होते जज़्बात,डगमगा जाता आत्मविश्वास । जितनी फूँकूं काम में जान,आधी फ़सल भी ना तैयार,समय निवेश पानी सा बहाव,हाथ में कुछ ना आए जनाब । मार्ग गलत या महनत ज़्यादा,कुछ ना कुछ गड़बड़ घौटाला,फ़ल ना पाऊं बीज जो डाला,इस […]

बच्चो के लिए श्रीभगवादगीता कोर्स

अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ या इस्कॉन का मंगलौर मंदिर बच्चों के लिए श्रीमद भगवद गीता का आयोजन करने जा रहा है | इस्कॉन को International Society for Krishna Consciousness – ISKCON और “हरे कृष्ण आन्दोलन” के नाम से भी जाना जाता है। इसे १९६६ में न्यूयॉर्क नगर में भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने प्रारंभ किया था। देश-विदेश […]

कागज और कलम – वन्दना जैन

कागज और कलम कागज और कलमकलम का गिटार लेकरथिरकने लगी मेरी उँगलियाँकागज के फर्श पर…हृदय और मस्तिष्क केसेतु पर झूलती हुई भवनाओंके गीत गाती…. कलम का हल लेकरये बस निकल पड़ी हैबन कर किसान…जोतने कागज का सीना…शब्द  बीज अंकुरण की चाह मेसींचती है संताप और हर्ष  केअश्रुओं से…अब ये सहमी सी नहींना ही संकुचित है… […]

ज़िन्दगी ने – कविता संदीप कुमार

ज़िन्दगी नेक्या बताएं हमें क्या दिखाया है ज़िन्दगी ने।कसम से बहुत ज्यादा तड़पाया है ज़िन्दगी ने। जिन रास्तों से दूर रहना चाहता था मैं।उन्हीं रास्तों पर हर बार चलाया है ज़िन्दगी ने।।जो ना करने को जमाने से कहा करता था।वही मुझसे हर बार कराया है ज़िन्दगी ने।। मुझे दुनिया को हँसाना अच्छा लगता है मगर।मेरी […]

वक़्त – कविता वन्दना जैन

वक़्त बदलते हुए वक़्त मे मैंनेलाचार समुन्दर देखेपतवारों के इशारे औरलहरों के नजारे देखेनाचती हुई नावें देखीआँखें रुआंसी औरलब मुस्कुराते देखेमहलों मे बसते वीराने देखे रिश्तों की तंग गालियाँबचपन की मजबूरअटखेलियां देखीकई कहानियां बेतुकीछोड़ती हुई केंचुकी देखीविपदा से उजड़े घरोंदे देखेफूलों की सलाखों के पीछेदुबके हुए परिंदे देखेमंदिर मे सोने की दीवारें देखीबाहर गरीब की कतारें […]

कोरोना में होली – कविता

कैसे खेलें हम ये रंग बिरंगी होलीजब दो गज दूर खड़ी हो हमजोलीलिए गुलाल हम गये छुने उसके गालरोक दिया उसने दुर से ही किया बबालबोली वो इस बार छूना नहीं,मजबुरी हैंकोरोना काल मैं दो गज दूरी जरूरी हैपूरे साल के इंतजार के बाद मौका आयाजालिम कोरोना उस पर कैसा रोका लायाकहते हैं जहां दिल […]

दल बदलने की रेलम पेल – कमल श्रीमाली

राजनीति में कभी इधर कभी उधर हो रहे हैंचुनाव आये हैं नेता इधर उधर हो रहे हैं कैसे सिद्धांत, कैसी पार्टी, कैसी नैतिकताइधर नहीं मिला टिकट तो उधर हो रहे हैं पता ही नहीं चल रहा है कौन किस पार्टी में हैसुबह किधर,दोपहर इधर,शाम उधर हो रहे हैं जब तक उधर थे भ्रष्ट, इधर आए […]

होली – कविता

खुशियों की रंगोली, 🌈समां में करुणा घोली,सारी नफ़रत धोली । मिटे गिले व शिकवे,चार चांद लगे शब पे,🌙🌙🌙🌙दुश्मन गए हैं छिप से, 🥵दोस्त मिले हैं दिल से । 💓 अनेकता में एकता, ✨नभ उत्सुक हो देखता,धरती पे आए देवता,अपनापन झलके व नेकता । 💃🏻 बिखरा पड़ा है ग़ुलाल, 🟣🔵🟢🟡हर चेहरा बना ग़ुलाब, 🌹सच हो गए […]

भगत, राज, सुखदेव … जिस्म अलग, रूह मगर एक

भगत, राज, सुखदेव … जिस्म अलग, रूह मगर एक .. तेईस मार्च,को गिरी थी गाज,था भगत को खोया,भस्म हिन्द का ताज । एक सच्चा सपूत,ईश्वर का दूत,उसकी कुर्बानी,कोई सके ना भूल । था ख़ुद को भूला,सदा देश ही सूझा,उस जैसा ना कोई,बस वतन की पूजा । हंसकर था चूमा,फांसी का झूला,जब हुआ शहीद,सूरज भी डूबा […]

फागुन – (कविता)

भूली बिसरी यादों केकचे पक्के रंगों सेलौटे अनकहे कुछ गीतों सेभरा पूरा फागुन होकुछ आँखों के तीरों सेकुछ पलाश के कालीनों सेकापोलों को गुलालों सेरंग देने की उत्कंठा सेभरा पूरा फागुन होहोंठो की दबी मुस्कानों औरदिल मे दबे एहसासों कीभॅवरे सी गूंजे गुनगुन होऐसा इस बार फागुन हो

होली – कविता

होली फिर मादकता की अंगड़ाई लेकर ,होली का पर्व आया हैआम्र कुंज से मुखर मुकुल का ,सौरभ पवन स्वयं लाया है || भूमि पर ज्योति की बांसुरी बजानेफूल के गांव में पांखुरी खिलानेहर किरन के अधर पर ,सरस तान यह लाया हैफिर मादकता की अंगड़ाई लेकर ,होली का पर्व आया है || मदन सखा सुकुमार […]

दुनियादारी – (कविता)

उम्र के महल मे घूमती देह कोझुरियों की नजर लग गईमाथे की सिल्वटेंचिंता के सिलबट्टे पर पिस गयीजीवन की आधी रातें सोच विचार मेऔर आधे दिन बेकार हो गएजो थे आंचल के पंछीअब हवा के साहूकार हो गएहर रोज कहती है जिंदगी मुझसेजाओ तुम तो बेकार हो गएहम भी ठहरे निरे स्वाभिमानीलगा ली दिल पर […]

उदासी – कविता

कुछ कह रही है ये उदासीबात मेरी भीसुन लो जरा सीमाथे पर नुमायां होतीलकीरेंभी कुछ कह रही हैंमौन का क्वच पहनेवाणी की तलवार भीहोंठो की मयान मे रखी हैऔरदिमाग के महलमे  उलझे सवालों के रेशेसे बनी चादर ओढ़ेलेटी है..फिर चादर उठाझरोखे से झांकती हैदेखती हैचेहरों के पीछे छुपे कई चेहरोंको.. आश्चर्य सेशून्य में कुछ खोजतीकभी […]

सुंदरता दिल से होती है

सुंदरता दिल से होती हैदिल सुंदर तो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड भीसुंदर दिखाई देता हैदिमाग का केंद्र बिंदुबाहरी सुंदरता पर टिका होता हैवह नापता रहता हैदेह की लंबाई,परिधिउभारों मेऔर उलझा रहता हैअपनी गणित केप्रमेय और कठिन सवालों मे…नहीं परख पाता वहभीतरी सुंदरता को..

लेकिन अधूरे इश्क़ का भी, एक अलग मजा है

लेकिन अधूरे इश्क़ का भी, एक अलग मजा है। वो साथ में बिताए लम्हे, सभी को याद रहते हैं।वो टूटे हुवे सारे ख़्वाब, दिल में आबाद रहते हैं।इश्क़ में दिलबर की बाहों में, कैद हम थे कभी।दिलबर की उन बाहों से, अब आजाद रहते हैं। समझ ना आए कि वो सजा थी, या ये सजा […]

विकल्प – कविता (वन्दना जैन)

विकल्पअब क्या विकल्प हैस्वयं से संकल्प हैअंधेरों को विराम दूँचाॅद को सलाम दूँया तारों को लगाम दूँजीवन तो अल्प हैआशा ही कल्प हैअब क्या विकल्प हैजो दिखे सत्य हैछुपा हुआ कृत्य हैतन की फैली बाहें हैंमन की सिकुड़ी राहें हैंरिश्तों मे भेद हैहर थाली मे छेद हैसत्य से अज्ञान हैंझूठ को अभिमान हैअब क्या विकल्प […]

फिर से लिखने चली हूँ

फिर से शब्द संजोने लगी हूँफिर से पत्र लिखने लगी हूँ इस बार थोडी चिंतित हूँशब्दों की लड़ाई से भयभीत हूँ कुछ पुराने स्नेह से सने पुष्प सेकुछ नए बैरंग शुष्क कागजी सेइनके अंतर्द्वंद मे उलझ गयी हूँ मन:स्थति उमड़ घुमड़ रही हैउंगलियों को सांखले जकड़ रही हैं कलम का घूँघट उतरने को आतुरकागज से […]