नज़रों की सीमा से मीलों उपरकोई गीत मिलन के गाता हों।
जहां सूरज बातें करता होंबिखरी रोशनी समेटता हों।
धरती भी अलसाती होंबादल ओढ़ लजाती हों।
चांद बीच आ जाता होंजलन में मुंह बिचकाता हों।
शाम ढले सब प्रीत लिएमिलन को रास रचाता हों।।