कविता-मौत की दस्तक
मै जीवन की आशाओं में खोया था
मै ज़ीवन की निराशाओं मे रोया था
मै उस मौत-ए-महबूबा को भूलकर
मै कल फिर से उठने के लिए सोया था
रात के घनघोर अंधेरे मे किसी ने मेरे,
दिल-ए द्वार पर यकायक दस्तक दी
मै एकाएक चौंका और इज़्तिराब से
आंखें खोलकर उठ खड़ा हुआ
मैने पूछा-कौन है वहां,
मैने पूछा-कौन है वहां
किसने मुझे आवाज दी
पर वो कुछ ना बोल रहे थे
मै हताश,निराश-सा सोच रहा
कि अभी तो मै बालक ही हूं
फिर ये मेरे यहां कौन आया है
बाकी है अभी जवानी आनी
जहां मिलेंगे बगिया और माली
जहां सपनो के बाग लगाऊंगा
जहां बैठकर मै राग सुनाऊंगा
मुझे आशाओं की किरणों को
अम्बर तक पहुंचाना है
अभी तो मै सोया ही हूँ
फिर ये कौन आया है
मै तड़फ रहा था
वो मुस्कुराते रहे थे
ना मै पूछ रहा था
ना वो कह रहे थे
तभी वो पास आए
मुझे धीरे-से पकड़ा और
कहने लगे-मै मौत हूं
और तुम्हे लेने आई हुं
By ajay mahiya