मन की बात

मन की बात

माना मज़दूर,
बेबस मजबूर ।

क्या करे ?
क्या ना करे ?

हुआ लॉकडाउन,
ये साथ में डाउन ।

हुआ बेरोजगार,
जैसे लाचार ।

सब कुछ गया रुक,
थमे ना पर भूख ।

आए मंत्री प्रधान,
करी मन की बात ।

देश का सेवक,
विनती हाथ जोड़कर ।

मांगे श्रमिक से माफ़ी,
कठिनाई काफ़ी ।

था ख़ुद को कोसा,
पर विकल्प ना दूजा ।

दिलाया भरोसा,
व्यवहार अपनों सा ।

दिल से संवेदना,
चिंता और चेतना ।

सबको मिले खाना,
रहने का भी ठिकाना ।

मत करें पलायन,
अभी समय अभागन ।

बचाएं अपनी जान,
तब ही तो जहान ।

ना हो अफरा तफरी,
नम आंखें बिफरी ।

रखें दूरी सबसे,
दुआ मांगें रब से ।

यही एक उपाय,
प्रार्थना अपनाएं ।

रखें ख़ुद को सुरक्षित,
हो कुटुंब का भी हित ।

महामारी ना फैले,
उद्देश्य ये पहले ।

गंभीरता को समझें,
विश्व रुका है थमके ।

अफवाहों पे ना गौर,
नहीं पड़ना कमज़ोर ।

सबका हो योगदान,
तभी हल व निदान ।

ना हो कोई हड़कंप,
रखें विवेक, संकल्प ।

सबसे की अपील,
बन परिपक्व, ना तू हिल ।

ये लक्ष्मण रेखा,
तेरी एक परीक्षा ।

मत इसको लांघ,
पीछे मुड़कर झांक ।

जो किया उल्लंघन,
फ़िर किया हनन ।

सोच दुष्परिणाम,
सोच तू अंजाम ।

तू विश्व को देख,
देख उदाहरण अनेक ।

एक ने की गलती,
फ़िर सबने भुगती ।

तू फ़िर से सोच,
मत कर संकोच ।

बन देशभक्त,
देश बचाना धर्म…
देश बचाना धर्म…

स्वरचित – अभिनव

कविता
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