क्या मनमोहन असल में “मौन” थे ?
मशहूर गणितज्ञ पाइथागोरस ने कहा था की इसका खेद मुझे अनेक बार हुआ कि मैं बोल क्यों पड़ा । शायद हमारे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी को इस बात का काफी अच्छा ज्ञान था। और इसलिए उनका तथाकथित मौन उनके चरित्र का हिस्सा नहीं बल्कि एक सोची समझी रणनीति थी।
इस बात को मैंने जानने की कोशिश की कि वे कब और कहाँ बोले एवं कब मौन धारण करके बैठे। यह विचार मेरे मन में तब आया जब पिछले दिनों उन्होंने नरेंद्र मोदी के खिलाफ कहा कि देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी का हनन करने वाली हालिया घटनाएं बहुत दुखद हैं और इससे पूरा देश चिंतित है।
आमतौर पर चुप्पी साधने वाले मनमोहन यहाँ नहीं रुके । उन्होंने कहा की असहमति या बोलने की आज़ादी को दबाने से देश के आर्थिक विकास पर बड़ा खतरा पैदा हो सकता है। आजादी के बगैर मुक्त बाजार का कोई मतलब नहीं है।
पहले तो यह अजीब सा लग रहा था परन्तु जब मैंने इतिहास देखा तो माजरा समझ आया । मनमोहन सिंह दरअसल अधिकतर समय खामोश इसलिए ही थे क्युकी उनके पास बोलने को कुछ था नहीं । कांग्रेस के भ्रष्टाचार और उसके खिलाफ जनता की आवाज इतनी बुलंद हो गयी थी की कुछ भी बोलना स्वयं एवं पार्टी के लिए खतरा ही था। वरना महाशय को मौका मिला नहीं और चौका मार देते थे जैसा की आजकल मार रहे है। और तोह और जनाब यु-टर्न लेने में भी नहीं हिचकिचाते ।
मसलन के तौर पर २००९ में जब नितीश कुमार ने नरेंद्र मोदी से हाथ मिलाया था तब मनमोहन सिंह ने वही पुराना धर्मनिरपेक्षता का भाषण दे दिया था । उन्होंने कहा था की नितीश वैसे तो धर्मनिरपेक्ष लगते है पर मोदी के साथ हाथ मिलाने के कारन मुझे शक हो रहा है । इसका करारा जवाब नितीश ने तुरंत यह कह कर दे दिया था की मुझे धर्मनिरपेक्षता का सर्टिफिकेट किसी से लेने की जरुरत नहीं । वही २०१३ में जब “मौन” साहब किसी भी बात की प्रतिक्रिया देने से इंकार कर रहे थे नितीश कुमार के भाजपा से अलग होने पर तुरंत धर्मनिरपेक्षता का सर्टिफिकेट दे बैठे।
एक बार करारा जवाब मिलने के बाद भी ऐसा कहना कितना उचित था? शायद मैडम के साम्राज्य में वे प्रधानमंत्री पद या तोह स्वयं की गरिमा को भूल गए ।
काश जब उनसे कोयला घोटाले के बारे में पूछा गया था तब ” हज़ार सवालो से अच्छी मेरी ख़ामोशी है ” की जगह इस तरह का कोई जवाब देते ।
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले उन्होंने कहा था की अगर मोदी देश के प्रधानमंत्री बन गए तो देश में तबाही हो जाएगी । शायद तबाही कांग्रेस की हो गयी है , क्युकी मेरी समझ में देश तो अच्छे दिनों के लिए अग्रसर है । हाँ, अगर तुवर दाल की कीमत से ही अच्छे बुरे की पहचान की जाये तो जरूर हम विकास के मार्ग से भटक रहे है । वैसे घोटालो का वर्ल्ड रिकॉर्ड बना के देश को किस तरह आबाद किया है यह बताना भूल गए|
अब यह बताना भूल गए या मैडमजी ने अभी तक उसके लिए पर्ची नहीं दी जिसे देख के पढ़ लेंगे । वैसे दस जनपद से मिली किसी भी पर्ची को पढ़ने में माहिर सरकार ने इंग्लैंड में हद्द मचा दी थी । ब्रिटिश साशन की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा था की ब्रिटिश साम्राज्य के आने से भारत को फायदे भी हुए थे । मेरी समझ से यह एक गुलाम मानसिकता है । जहाँ एक और मोदी बाहर के देशों में जा कर भारत माता की जय के उद्घोष लगवा रहे है , वही आपके इस तरह के बयान किसी भी तरह तारीफ के काबिल नहीं है ।
वैसे अंग्रेजी हुकूमत पर कांग्रेस के ही दूसरे नेता शशि थरूर के ऑक्सफ़ोर्ड में दिए भाषण को सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए । उसके लिए थरूर जी को नमन । यह भाषण आपको YouTube आदि पर आसानी से मिल जायेगा ।
खेर, वापस मनमोहन जी पर आते है । वैसे ऐसा नहीं है की उन्होंने अपना मौन व्रत कुछ बार तोडा है । बस बोलने के मौके काम मिले थे। अब गाँधी परिवार लिमिटेड कंपनी के कारनामो का विषपान जो कर रहे थे ।
पर यह बात अजीब से लगती है की जो प्रधान मंत्री रह कर कांग्रेस में 12th man की तरह थे उन्हें इस समय गांधी परिवार के प्रशंशक बनाने की क्या जरुरत आन पड़ी? खैर बोलते रहिये मनमोहन जी, आपकी बातों का तब फर्क नहीं पढ़ा अब क्या पढ़ने वाला है ।