कर्म प्रथम

कर्म प्रथम

कर्मा जो हमारे हाथों बुद्धि मन वचन से किया जाए । चाहे वह शब्द माध्यम हो या कर माध्यम हो जीवन चक्र चलता ही रहता । हम सब इसी के आसपास किसी वृत्त की भांति घूमते रहते लगता है कि सब कुछ हासिल कर लेना है । प्राणी पर किसी परिक्रमा की भांति भागता रहता है ।


क्या है जीवन चक्र ॽ
सब कुछ किसी मनुष्य द्वारा रचा गया है या कोई अदृश्य शक्ति काम करती है । पत्ता तक हिलता नहीं खिले न एको फूल लगता है कि हम सब निर्धारित करते है लेकिन ऐसा है नहीं हम चाहते तो है सब अच्छा ना करम गति फिर क्यों निर्धारित हो जाती है। पर मेरा मानना है कि कर्म करते रहो बस सिर्फ कर्म वह किस दिशा में वह वक्त ही बन जाता है मनुष्य मात्र कठपुतली सा प्रतीत होता है।

मन कितना चंचल प्रतीत होता है। किस उलझनों में फंसा है। जीवन में संघर्ष कल्पना मनोवृति है । मन को भ्रमित करने वाले विचार मन को सही दिशा में बांधने के लिए किस चीज की आवश्यकता है। आत्मबल मनोशक्ति सुद्रण सही लगाम सही दिशा आचरण आज अच्छे भी होते हैं और बुरे भी हमें तय करना है कि हमें कौन सा मार्ग चुनना है या उसने मेरे लिए पहले चुना है। क्या शब्द है इस भ्रम में क्या उलझा है भ्रम में उलझने से अच्छा कर्म को चुन लो या कर्म हमें उस ईश्वर ने जो मेरे लिए रखा शायद और कोई ना कर सके।

तभी हमें चुना कर्म ही प्रधानता से ही सर्वोपरि है जीवन निर्भर बनने में अपने ही विचारों को अभिव्यक्त करना जीवन को सही मार्ग देना सफलताओं की ओर बढ़ना क्रमबद्ध उसी प्रकार जिस प्रकार सीढ़ियों का सहारा लेते हैं और कदम कदम जीवन के हर एक पायदान पर आगे बढ़ते रहते हैं इसीलिए सर्वप्रथम कर्म को प्राथमिकता देनी चाहिए।

कर्मकर्म प्रथमजीवन चक्रलेख