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कैसे कह दूं कि तुम नहीं मेरे हो ! तुम मेरे नहीं, पर मेरे हो, ज़रूरी नहीं कि बन्धन हों, फ़ेरे हों, तन जुदा हैं, पर मन में तो ठहरे हो, रूहें तृप्त जब रिश्ते गहरे हों ।