जीवन या कहर

जीवन या कहर

ये काली घटा कांटों का महल
ये जीवन है या कोई कहर
टूटा है बनके पहरा यूं
जैसे पी लिया हो कोई जहर

क्यों मंदम हवा है वहकी सी
और वीरानगी भी चहेंकी सी
पीतल का निकला हर वो महल
जिसे सोचा स्वर्ण महल हमने

कहीं दूर से आती एक आवाज़
जहां दफ़न हैं कई हजारों राज
उस घाटी का है अलग चमन
जहां वीराना भी लगे अमन।

poemकविता