इस बार दिवाली ………
इस बार दीवाली कुछ अलग है,
कर रही हमें ये सजग है,,
दे रही उम्मीदों की झलक है,,,
ज़िंदा रहने की सिर्फ़ ललक है ।
इस बार सफ़ाई नहीं प्राथमिकता,
पकवानों में भी मन नहीं लगता,,
वेशभूषा की और अब ध्यान नहीं टिकता,,,
गहनों का भी आकर्षण नहीं दिखता ।
ना ख़रीदारी है,
ना जेब भारी है,,
पटाखों की दुकान भी ख़ाली है,,,
बड़ी मुश्किल से ज़िन्दगी संभाली है ।
लंबी छुटियों का जोश नहीं,
सैर सपाटे की होड़ नहीं,,
तरक्क़ी की भी दौड़ नहीं,,,
बढ़ोतरी भी उम्मीद छोड़ गई ।
अब तो बस बचना व बचाना है,
जीवित हैं, ये शुकराना है,,
हर शय की क़दर को जाना है,,,
प्यार दुआओं का खोजें खज़ाना हैं ।
ये दिवाली दे रही अजब नसीहत है,
परिवार संग ज़िन्दगी खूबसूरत है,,
कुटुम्ब नींव, कुटुम्ब छत है,,,
सुख दुख साझा, ये अमृत है ।
आओ दिये जलाएँ हम उनके लिए,
जो कर्मवीर छोड़ हमें चल दिए,,
वे हुए शहीद कि हम जीएँ,,,
करें अदा फ़र्ज़ उनके कुल के लिए ।
आओ फैलाएं खुशियां हम,
दें मदद, हुए बेरोज़गार जो जन,,
सहयोग करें,जो कारोबार हुए ठप,,,
स्वस्थ खुशहाल हो बेहतर कल ।
अभिनव ✍🏻