हॉकी के भीष्म पितामह “अमर” हो गए



अगर आप मंदसौर शहर में रह चुके हैं और सुबह सुबह कुछ बच्चों को शहर के एक कोने से दूसरे कोने दौड़ते हुए या किसी ग्राउंड के चक्कर लगते हुए और फिर हॉकी खेलते हुए देखते हैं तो आप जानते होंगे कि ये अमरसिंह सर या PT सर के शिष्य या “चेले” है|

ये सिलसिला 1-2 साल का नहीं है बल्कि दशकों से चल रहा है| जिस राष्ट्रीय खेल, हाकी, को हम क्रिकेट के कारण भूलते जा रहे हैं, उस खेल की सेवा में PT सर का योगदान अद्वितीय है| पिछले लगभग ५० वर्षो से सर निरंतर इस हॉकी के खेल से कई तरह से जुड़े रहने के कारण उन्हें हॉकी का भीष्म पितामह कहना बिलकुल भी अतिश्योक्ति नहीं होगी |

8-9 साल की उम्र में मैं और मेरे जैसे कई बच्चो का PT सर ने हाथ थामा और हॉकी खेलने की प्रेरणा दी| सुबह शाम हम लोग हाथ में हॉकी लिए पैरो में शीन-गार्ड बांधे निकल जाते थे नूतन स्कूल|

हम रोज जाए ना जाए पर अमरसिंह सर रोज वहा जाते थे| सर्दी हो या गर्मी, त्योहार हो या साधारण दिन, शायद ही कोई दिन हो जब अमरसिंह सर मैदान में ना हो| अगर वे मैदान में नहीं होते थे तो ये मानना स्वाभाविक होता था की वो किसी न किसी टीम को किसी स्पर्धा के लिए ले गए है|

हर बैच की शुरुआत मैदान के चक्कर काटने से होती थी, उसके बाद व्यायाम, फिर थोड़ी प्रैक्टिस और फिर शुरू होता था खेल| ये खेल दशकों तक चला, अनगिनत खिलाड़ी जुड़े, मेरे जैसे ना जाने कितने लोगों राज्य या राष्ट्रीय स्तर तक खेल पाए, ना जाने कितने लोगों को खेल से जुड़ने के कारण नौकरियां लगी और सबसे बड़ी बात लोग स्वस्थ हुए|

अनुशासन सर का पर्याय बन चूका था | शायद ही कोई चेला हो जिसको सर की हॉकी का “स्वाद” {मार} ना चखा हो |

PT सर का कद इसलिए भी उत्तम है क्यूंकि इस काम के लिए उन्होने कभी किसी से कोई फीस नहीं ली| ऐसी श्रद्धा, ऐसी निष्ठा देखना अत्यधिक दुर्लभ है| मंदसौर के सेंट थॉमस स्कूल के स्पोर्ट्स टीचर रहे श्री अमरसिंह जी ने ना सिर्फ अपने स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों को खेल से जोड़ा बल्कि पूरे शहर के छात्रों को लाभान्वित किया| स्कूल में भी हर सप्ताह होने वाली PT के कारण उनका यह नाम प्रचालित हुआ|

सर की बदौलत मंदसौर शहर और मध्य प्रदेश का नाम देश विदेश तक गया | मंदसौर शहर में कई बार हुए हॉकी टूर्नामेंट की बागडोर भी सर ने संभाली | चाहे ग्राउंड को खेल के लिए उपयुक्त करवाना हो या आयोजन के लिए जरुरी सामान मंगवाना, अमरसिंह सर और उनके मेरे जैसे चलो के बिना नहीं होता था |

उनकी PT सिखाने का तरीका भी सराहा गया| 15 अगस्त का समारोह हो या 26 जनवरी का, पूरे शहर के बच्चों का जो PT प्रदर्शन होता था वो सर की देखरेख में ही होता था|| हज़ारों छात्रों से बिना गलती के PT करवाना अपने आप में विशेषता है|

यह दीपवाली सर के हज़ारो शिष्यों और चाहने वालो के लिए एक बुरी ख़बर ले कर आई | एक दुर्घटना के शिकार होने के कारण उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती होना पड़ा | इस ख़बर ने मानो पुरे शहर को सदमा सा दे दिया | देश विदेश से लोगो ने सर की सेहत की प्रार्थना की और हर संभव प्रयास किया की सर की हालत में सुधार आये |

पर होनी को कौन टाल सकता है | हादसा बेहद गंभीर था और डॉक्टरों को लाख कोशिशों के बावजूद वे सर को बचा नहीं पाए | एक महान गुरु, पितृ तुल्य शिक्षक, कोच और खिलाडी अब हमारे बीच नहीं रहे |

हॉकी का एक सितारा “अमर” हो गया | श्रद्धांजलि |

Comments (4)
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  • Mahendra Kumar

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