गुरु से हर राह शुरू…
गुरु शिष्य,
मनोरम दृश्य,
उज्ज्वल भविष्य,
अनुयायी कृतज्ञ ।
मिला गुरुमंत्र,
हो जा स्वतंत्र,
ना हो षड्यंत्र,
सर्वोपरि गणतंत्र ।
दी गुरुदक्षिणा,
ना नफ़रत घृणा,
ना उपकार गिना,
हर तरफ़ हिना ।
ऐसी दी सीख,
कम है तारीफ़,
ना भूख अधिक,
संतोष समीप ।
गुणवत्ता डाली,
पूरी भर दी प्याली,
बस बोल ना ख़ाली,
ना पुलाव ख़याली ।
ऐसे संस्कार,
सात्विक आहार,
जीवन साकार,
केवल परोपकार ।
तप की है खाद,
सबकुछ आबाद,
आशावादी बात,
वजह आशीर्वाद ।
संयम व विवेक,
बंदा बना नेक,
सबकी देखरेख,
एका में एक ।
ज्ञान भरसक कूटा,
कोई रोम ना छूटा,
बन गया अनूठा,
ना किसी ने लूटा ।
ना टस से मस,
कण कण में सच,
है न्याय कवच,
सृष्टि दी रच ।
शत शत नमन,
हिन्द नतमस्तक,
गुरु दे दस्तक,
आ जाए चमक ।
अनुग्रहित – अभिनव ✍