गीत- रुस्वा करूं {अजय माहिया}

खुदा करे के तु रूठे ओर मनाऊं मै
इसी दिन के लिए,तुझे सताऊं मै ।


कैसा ये अफ़स़ाना,कैसी मोहब्बत है
‌‌‌ ‌‌ तुम्ही को रूस्वा करता जाऊं मै ।

कितनी सीदत से तुझे ,तराशा है खुदा ने
लगता है कोई जन्नत की नूर है तू ।

तेरे लिए ही जीता हूं और मरता हूं मै
बस तुम्ही से शरारत करता हूँ मै ।

क्या तुम्हे‌ मै बताऊं ओ मेरे सनम
बिना तेरे कितना तन्हा और अधूरा हूं मै ।

अजय तेरा कात़िब,किस्सा दिया खुदा ने
ख़ता है ये कैसी की तुझे रुस्वा करता मै ।

कविता