गणपति बप्पा मौर्या
एकदंत गणपति,
सीखों की समृद्धि,
अपनालो तो सिद्धि,
बल व यश में वृद्धि ।
सब देवों में प्रथम,
दिल में रहते हरदम,
मुरीद हर कोई जन,
आराध्य पूज्य गजानंद ।
ना धर्म जाति ना मज़हब,
ना कोई सीमा या सरहद,
इन सबसे परे व अलग,
ना भेदभाव ना फ़र्क।
उनके जैसा पुत्र,
मांगे हर एक युग,
सेवा की ही भूख,
मात पिता सबकुछ ।
हर काम की शुरुआत,
गणेश जी का आह्वान,
एकाग्रता की वे मिसाल,
स्थिरता की पहचान ।
ईश्वर का दिया रंग रूप,
कीजिये उसका शुक्र,
आप जैसे भी हैं, करें फ़क्र,
आप हर हाल सर्वश्रेष्ठ ।
कान के बनिए सच्चे,
ना कि बनिए कच्चे,
सुनिए बेशक हर कृत्य,
उतारिए अंतर सिर्फ़ सत्य ।
आँखें हों गर सूक्ष्म,
जीवन साथ में तीक्ष्ण,
पैनापन हर क्षण,
हर कार्य में निपुण ।
जैसी भी हो दशा,
भांपने की हो कला,
चाहे आए विपदा,
हो पहचान की क्षमता ।
श्रद्धा की हो भरमार,
ये सब सुखों का सार,
बुद्धि चाहे फँसे भ्रम जाल,
श्रद्धा ना डोले किसी हाल ।
स्वरचित – अभिनव ✍🏻