गांधी के सपनों का ,उड़ता नित्य उपहास है

गांधी के सपनों का ,उड़ता नित्य उपहास है


वही पालकी देश की
जनता वही कहार है
लोकतन्त्र के नाम पर
बदले सिर्फ सवार हैं
राज है सिर्फ अंधेरों का
उजालों को वनवास है
यहाँ तो गांधी के सपनों का
उड़ता नित्य उपहास है ||


महफ़िल है इन्सानों की ,
निर्णायक शैतान है
प्रश्न ,पहेली ,उलझन सब हैं
गुम तो सिर्फ समाधान है
वही पालकी देश की
जनता वही कहार है
लोकतन्त्र के नाम पर
बदले सिर्फ सवार हैं ||


राजनीति की हैं प्रदूषित गलियां
खरपतवारों की पोर है
गूंज उठा धुन दल बदल का
अदल बदल का दिखता दौर है

देश प्रेम भावों का हो गया पतन
जन धन के पीछे भागे है
धन की भूँख बढ़ी ऐसी
जन तन के पैसे मांगे है ||


महँगाई नित बढ़ रही
जनता को खूब रुलाया है
समझ न आए अपना है कौन यहाँ
जनवाद का अच्छा ढोंग रचाया है
बढ़े भाव ,रह अभाव में पौध हमारी सूखी है
ली तिकड़म की डिग्री जिन्होंने
उन्ही की बगिया फूली है
अब तो है राज अंधेरों का
उजालों को वनवास है
यहाँ तो गांधी के सपनों का
उड़ता नित्य उपहास है
वही पालकी देश की
जनता वही कहार है
लोकतन्त्र के नाम पर
बदले सिर्फ सवार हैं ||

कविता