फागुन – (कविता)

भूली बिसरी यादों के
कचे पक्के रंगों से
लौटे अनकहे कुछ गीतों से
भरा पूरा फागुन हो
कुछ आँखों के तीरों से
कुछ पलाश के कालीनों से
कापोलों को गुलालों से
रंग देने की उत्कंठा से
भरा पूरा फागुन हो
होंठो की दबी मुस्कानों और
दिल मे दबे एहसासों की
भॅवरे सी गूंजे गुनगुन हो
ऐसा इस बार फागुन हो

कविता