दौर कुछ यूँ आया
पशुओ को कैद कर जो मनुष्यों ने था कब्जा जमाया ,
अब उसी मनुष्य जाति को नियति ने घर पर बिठाया |
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दौर कुछ यूँ आया
जिन अख़बारों की बस्ती मे जुर्म के चेहरे थे बहुत ,
उस बस्ती मे सिर्फ एक चेहरा नजर आया |
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दौर कुछ यूँ आया
उंगलियों की गिनती से हज़ारों तक का सफर मिनटों मे आया ,
उस दानव ने यमराज बन सब को दहलाया |
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दौर कुछ यूँ आया
ना फुरसत होने वालो को फुरसत का बोध कराया ,
शायद समय रुक जाये कहने वालो को समय का रुकना दिखाया |
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दौर कुछ यूँ आया
अमीरों का समय से पूर्व भविष्य को सोच राशन का लाना ,
गरीबों का वही एक रोटी के लिए आँचल फैलाना |
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दौर कुछ यूँ आया
कि अख़बारों की गिनती को सुन हाय -तोःबाह चिल्लाना ,
फ़िर शाम को दोस्तों के साथ चर्चा कर उन गिनती मे से एक हो जाना |
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दौर कुछ यूँ आया
पार्टियों का भाषण छोड़ ट्विटर और फेसबुक को तीर का कमान बनाना ,
और जिन्हें ना था घुंघरूओं का ज्ञान उनका तालो का भेद बताना |
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दौर कुछ यूँ आया
जहा रामायण और भगवतगीता को दिखा चरित्र निर्माण का सहारा बनाया ,
तो वही किसने कितना दिया का हिसाब रखवाया
और फिर उसी को जाति का आधार बताया |
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दौर कुछ यूँ आया
मातृ भूमि पर लाशों का कहर छाया ,
एक दिन के बच्चे को भी मास्क पहनाया |
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दौर कुछ यूँ आया
भगवान ने समाज सेवी का रुप धर फिर से राक्षसों का संहार करने वाले दूतों को लगाया ,
तो कुछ की विपरीत बुद्धि ने उन्हे बैसाखियो पर चलाया |
है नहीं मालूम मुझे की मेरा कहा कितना समझ आया …
यूँ कहलो मैने अपने दिल का हाल बताया |||