दौर जाएगा बीत…
सिर्फ़ इक्कीस दिन,
दे ये पलछिन ।
देदे ये मुझको,
मेरे दर्द को समझो ।
मेरी है ये विनती,
एक सुई के जितनी ।
ज़्यादा नहीं मांगा,
देदे मुझे तू वादा ।
घर में तू बैठ,
ना घूम, ना सैर ।
हो घर में बंद,
वहां बहुत आनंद ।
थोड़ा हो तन्हा,
ये तेरा लम्हा ।
कुछ तो तू थम जा,
ख़ुद में ही रम जा ।
बाहर है विशाणु,
छोटा परमाणु ।
वो जैसे भूत,
किया सब ही अछूत ।
है जैसे सांप,
सब रहे हैं कांप ।
फन है फैलाए,
डर रहे हैं साए ।
सूरज भी चुप है,
बादल में गुम है ।
फ़िर भी है लड़ना,
बिल्कुल ना डरना ।
दुनिया को भूल,
घर में मिल जुल ।
मत बाहर झांक,
लगी हुई है आग ।
थोड़ा रख सब्र,
छंट जाएंगे अब्र ।
गया विश्व है थम,
तू नहीं है कम ।
सब बन गए बुत,
बिन बातें चुप ।
ये लम्हा नाज़ुक,
बन बहरा मूक ।
हर पल ही सचेत,
सावधानी समेत ।
खाले तू कसम,
तुझमें भी दम ।
तेरा इम्हितान,
बचा अपनी जान ।
संघर्ष कर, जीत,
दौर जाएगा बीत…
दौर जाएगा बीत…
स्वरचित – अभिनव