दारू पर टिकी अर्थव्यवस्था
जिसके घर आना शुरू हुई ,
उस घर की खुशियां चली गई।
दारू वाले इसको पीकर,
रुतबा अपना दिखाते हैं ।
कभी खुशी के नाम ,
कभी गम के नाम एक पैक बढ़ाते।
हर दिन नया कोई बहाना बतलाते,
इसको पीकर खूब देखो यह कैसे इतराते ।
इन लोगों पता ही नहीं चला कब क्या खो देते ,
कितना कुछ खोकर भी यह दारू पर ही इतराते।
समाज में जो कुरीत इसको खूब सच बतलाते ,
नारी में सारे दोष बता खुद से पल्ला झाड़ते।
कितने घर उजड़ गए इस नशे के चक्कर में,
यह लाइलाज बीमारी से कब मुक्त होगा देश।
दारू मुक्त देश बनाना होगा,
हम सब मिलकर करें प्रयास।
मैरी
कन्नौज