आप … बस आप … बेइंतिहा …

आप … बस आप … बेइंतिहा …

बड़े दिनों से,
आपसे हो नहीं पाई गुफ़्तगू ।
सोचा आप याद नहीं करते,
मैं ही क्यूँ ना आपको याद करूं ।

दिल था बेचैन,
लग रहा था कुछ अटपटा,
मुझसे रहा ना गया,
सोचा – किया जाए हालचाल पता ।

एक ही बात है,
आपने याद किया या मैंने,
दूरियां घटाना मक़सद था,
क्या दूजा क्या पहले !

मन को बड़ी तसल्ली है,
हो रहा आपसे इज़हार,
ऐसा लग रहा मानो,
बागों में फ़िर लौटी बहार ।

आप बात करें,
तो गदगद होता मन,
आप बनें अनजान,
फ़िर दिखता प्रश्न चिन्ह ।

आप सबकी संगत,
मैं हुआ भाव विभोर,
कहां पड़ा था तन्हाई में,
अब महफ़िल चारों और ।

रिश्ता चाहे ना ख़ून का,
आपसे नाता अनमोल,
ना कोई लेन-देन है,
ना ज़्यादा कम कोई तोल ।

शालीनता है, निपुणता है,
इस पटल में अजब सा जादू है,
ना स्वार्थ है, ना ऐब कोई,
हरदम ही सावन भादो है ।

चेहरे पे रंगत है,
बिन बात के छाई ख़ुशी,
आप सब की छाया से ही,
हुआ सकारात्मक, आई ज़िंदादिली ।

ना कोई बड़ा, ना है छोटा,
सब समतल निर्मल चित्र हैं,
है वाह वाही और आशीर्वाद,
सब यहां पे सच्चे मित्र हैं….
सब यहां पे सच्चे मित्र हैं….

साधुवाद – आपका अभिनव ✍

कविता