बन देश भक्त …
मत डर बेशक,
रह मगर सतर्क ।
घर क्या है पीड़ा ?
बाहर बस कीड़ा ।
घर समय गुज़ार,
तेरा परिवार ।
ले आ ठहराव,
एकांत में नांव ।
गर ना तू माना,
सख़्ती जुर्माना ।
ख़ुद भी डूबेगा,
साथ ले डूबेगा ।
थोड़ा जा संभल,
कुछ तो जा थम ।
मत कर तू गलती,
कर कद्र तू पल की ।
बन ज़िम्मेदार,
क्या जीत क्या हार ?
ना नाकेबंदी,
है ये रजामंदी ।
कर सावधानी,
मत कर नादानी ।
मत कर मनमानी,
तन्हाई अपनानी ।
ना हो सामाजिक,
बस तब उम्मीद ।
सन्नाटा कर,
ना हो हलचल ।
कुछ दिन वीरान,
बन जा अंजान ।
थोड़ी कर शर्म,
अपनाले धर्म ।
कुछ दिन तो मौन,
चुप्पी ही द्रोण ।
घर ना है क़ैद,
ये ऊर्जा, वैद्य ।
ना कर लापरवाही,
भूल पड़ेगी भारी ।
ले तू संकल्प,
ना कोई विकल्प ।
अब सुधर जा,
बाहर मत जा ।
तू संयम रख,
थोड़ा सा बिखर ।
मत तू घुल मिल,
कम कर मुश्किल ।
ये ना मजबूरी,
अब ये ही ज़रूरी ।
है स्थिति गंभीर,
थोड़ा रख धीर ।
देश इटली चीख,
अब तो जा सीख ।
लेगा जो सबक,
फ़िर नहीं सिसक ।
थोड़ा रुक जा,
बैठ झुक जा ।
ले चैन की सांस,
तुझसे है आस ।
हो जा जागरुक,
ये समय नाज़ुक ।
रख अनुशासन,
हो कर्तव्य पालन ।
चल मिलके लड़ेंगे,
हम आगे बढ़ेंगे ।
हो जाए ना देर,
सोच समझ के खेल ।
मत देख तमाशा,
तू बन जा आशा ।
निभा ले धर्म,
कर शुभ कर्म ।
अदा कर कर्ज़,
यही तेरा फ़र्ज़ ।
देश प्रधान मंत्री,
करें तुझसे विनती ।
जो लक्ष्मण रेखा,
ना कर अनदेखा ।
ना लेना लांघ,
ये समय की मांग ।
जो करा उल्लंघन,
फ़िर प्रलय सघन ।
माना आई विपदा,
और तो ना बड़ा ।
मत बन गद्दार,
बन समझदार ।
बन परिपक्व,
बन देश भक्त …
बन देश भक्त …
स्वरचित – अभिनव ✍🏻